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________________ विजयोदया टीका 'पादोसियाधिकरणिय कायिय परिदावणादिवादाए' पादोसिय शब्देनेष्टदारवित्तहरणादिनिमित्तः कोपः प्रटेप इत्युच्यते । प्रद्वेष एव प्राद्वेषिको यथा विनय एव वैनयिकमिति । हिंसाया उपकरणमधिकरणमित्युच्यते । हिंसोपकरणादानक्रिया आधिकरणिकी । दुष्टस्य सतः 'कायेन वा चलनक्रिया कायिकी । परितापो दुःखं दुःखोत्पत्तिनिमित्ता क्रिया पारितापिकी। आयुरिन्द्रियबलप्राणानां वियोगकारिणी प्राणातिपातिकी । 'एदे पंच पओगा' एते पञ्च प्रयोगाः । "हिंसाकिरिआओ' हिंसासम्बन्धिन्यः क्रियाः ॥८०१॥ तिहिं चदुहिं पंचहिं वा कमेण हिंसा समप्पदि हु ताहिं । बंधो वि सिया सरिसो जइ सरिसो काइयपदोसो ।।८०२॥ 'तिहिं चहि पंचहि वा' त्रिभिर्मनोवाक्कायैः, चतुभिः क्रोधमानमायालोभः, पञ्चभिः स्पर्शनादिभिरिन्द्रियैर्वा । 'कमेण हिंसा समप्पदि खु' क्रमेण हिंसा समाप्तिमुपैति । ताभिर्मनसा प्रद्वषो वचसा द्विष्टोऽस्मीति वचनं वाग्द्वपः । कायेन मुखवैवादिकरणं कायद्वषः । मनसा हिंसोपकरणादानं, वाचा शस्त्रं उपगृहामीति हस्तादिताडनं इति अधिकरणमपि त्रिविधं । मनसा उत्तिष्ठामीति चिन्ता कायक्रिया। वचसा उत्तिष्ठामि इति, हन्तुं ताडयितमिति उक्तिः । कायेन चलनं कायिकी। मनसा दुःखमुत्पादयामीति चिन्ता, दुःखं भवतः करोमि इति उक्तिर्वाचा पारितापिकी क्रिया । हस्तादिताडनेन दुःखोत्पादनं कायेन पारितापिकी क्रिया । प्राणान्वियोजयामीति चिन्ता मनसा प्राणातिपात:, हन्मीति वचः वाक्प्राणातिपातः । कायव्यापारः कायिकप्राणातिपातः क्रोधनिमित्ता कस्मेश्चिदपीति, माननिमित्ता. मायानिमित्ता, लोभनिमित्ता, क्रोधादिना शस्त्रग्रहण गा०-'पादोसिय' शब्दसे इष्ट स्त्री, धन हरने आदिके निमित्तसे होनेवाला कोप प्रद्वेष कहलाता है। प्रद्वेष ही प्राद्वेषिक है जैसे विनय ही वैनयिक है। हिंसाके उपकरणको अधिकरण कहते हैं। हिंसाके उपकरणोंका लेन-देन अधिकरणिकी क्रिया है। दुष्टतापूर्वक हलन-चलन कायिकी क्रिया है। परितापका अर्थ दःख है। द:खकी उत्पत्तिमें निमित्त क्रिया पारितापिकी है। आयु इन्द्रिय और बल प्राणोंका वियोग करनेवाली क्रिया प्राणातिपातिकी है। पाँच प्रकारकी प्रयोग हिंसासे सम्बन्ध रखनेवाली क्रियाएँ हैं ।।८०१॥ गा०-ट्रो०-मन वचन काय इन तीनसे, क्रोध मान माया लोभ इन चारसे और स्पर्शन आदि पाँच इन्द्रियोंसे क्रमसे हिंसा होती है। मनसे द्वष करना, वचनसे मैं द्वषयुक्त हूँ ऐसा कहना वचनद्वष है। शरीरसे मुखको विकृत आदि करना कायद्वष है। मनसे हिंसाके उपकरण स्वीकार करना, वचनसे मैं शस्त्र ग्रहण करता हूँ ऐसा कहना, कायसे हाथ आदि भांजना ये अधिकरणके तीन भेद हैं। मनसे विचारना 'मैं मारनेके लिए उठू' वचनसे कहना मैं मारनेके लिए उठता हूँ। और कायसे हलन-चलन ये तीन कायिकी क्रिया है। मनमें चिन्ता करना 'मैं दुःख दूं' यह मानसिक पारितापिकी क्रिया है। आपको दुःख दूं ऐसा कहना वाचनिक पारितापिकी क्रिया है । हाथ आदिके द्वारा ताड़न करनेसे दुःख देना कायिक पारितापिकी क्रिया है । मैं प्राणोंका वियोग करूँ ऐसा चिन्तन करना मानसिक प्राणातिपात है । मैं घात करता हूँ ऐसा कहना वाचनिक प्राणातिपात है । शरीरसे व्यापार करना कायिक प्राणातिपात है। यह किसीमें क्रोधके निमित्तसे, किसीमें मानके निमित्तसे, किसीमें मायाके निमित्तसे और किसीमें लोभके निमित्तसे होता है । क्रोध आदि १. काये भवा चा-आ० । २. स्त्रं नोप-अ०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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