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प्रस्तावना
अनेक उद्धरण दिये हैं किन्तु उनमेंसे कम ही उनमें मिलते हैं। अपराजितकी टीकाके सम्बन्धमें आगे विचार करेंगे। तब उनकी स्थिति पर विशेष प्रकाश पड़ सकेगा। किन्तु हमें वे सवस्त्र मुक्ति या स्त्री मुक्तिके समर्थक प्रतीत नहीं हुए। भगवती आराधना और कथाकोश
भगवती आराधनामें कहा है कि जब संस्तरपर स्थित क्षपकका अन्तकाल आता है तब अशुभ मनवचनकायको निर्मूल करनेके लिए चार परिचारक धर्मकथा कहते हैं (६५९) । फलतः इस ग्रन्थमें गाथाओंके द्वारा ऐसे अनेक उदाहरण दिये गये हैं। किन्तु उनमें केवल व्यक्ति और घटनाका उल्लेख मात्र है कथाएं नहीं दी हैं। विजयोदया टीकामें भी गाथामें आगत शब्दोंकी व्याख्यामात्र है। आशाधरने कहीं-कहींपर कुछ विशेष कहा है । शोलापुरसंस्करण पृ० ६४३ पर अपनी टीकामे वह लिखते हैं'अति दुर्लभत्वे दश दृष्टान्ताः सूत्रेऽनुश्रूयन्ते
__ चुल्लय पासं धण्णं जूवा रदणाणि सुमिण चक्कं वा ।
कुम्भ जुग परमाणुं दस दिटुंता मणुयलंभे ।। . एते चुल्ली भोजनादि कथा सम्प्रदाया दशापि प्राकृतटीकादिषु विस्तरेणोक्ताः प्रतिपत्तव्याः '।
अर्थात् मनुष्य जन्मकी दुर्लभताके सम्बन्धमें सूत्रमें दस दृष्टान्त सुने जाते हैं। ये चुल्ली आदिकी दसों कथायें प्राकृत टीका आदिमें विस्तारसे कही है। आशाधरके इस उल्लेखसे प्रकट है कि भगवती आराधनापर प्राकृतमें भी कोई टीका थी और उसमें ये कथाएँ विस्तारसे दी हुई थीं । सम्भवतया इसीसे विजयोदया आदिमें नहीं दो गई हैं।
स्व. डा० ए० एन० उपाध्येने हरिषेणकृत बृहत्कथाकोशकी अपनी अंग्रेजी प्रस्तावनामें आराधनासे सम्बद्ध कथाकोशों और कथानकोंपर विस्तारसे प्रकाश डाला है। यहाँ उसीके आधारपर संक्षेपमें ज्ञातव्य बातें दी जाती हैं। ऐसे कथाकोश हैं-१. हरिषेण कथाकोश (सं०), २. श्रीचन्द्रका अपभ्रंश कथाकोश, ३. प्रभाचन्द्र कथाकोश (सं०), ४. नेमिदत्तका आराधना कथाकोश (सं० पद्य), ५. नयनन्दिका अपभ्रंश कथाकोश, तथा पुरानी कन्नड़में वट्टाराधने ।
इन पाँचोंमें हरिषेण कथाकोशमें सबसे अधिक कथाएँ हैं, परिमाण और विस्तारमें भी यह सबसे बड़ा है और सबसे प्राचीन भी है।
श्री चन्द्रको विशेषता यह है कि प्रथम वह आराधनासे गाथा देते हैं उसका संस्कृतमें अर्थ देते है फिर उससे सम्बद्ध कथा कहते हैं। उनका लिखना है कि जैसे दीवारके विना उसपर चित्रकारी सम्भव नहीं है उसी प्रकार गाथाकी शब्दशः व्याख्याके विना पाठक कथाको नहीं समझ सकता । वह प्रथम गाथाके व्याख्यानसे अपना कथाकोश प्रारम्भ करते हैं।
प्रभाचन्द्रका कथाकोश संस्कृत गद्यमें है। भारतीय ज्ञानपीठसे इसका प्रकाशन हआ है। ग्रन्थकारने इसका नाम आराधना कथा प्रबन्ध दिया है। प्रत्येक कथाके प्रारम्भमें ग्रन्थकारने संस्कृत गद्यके साथ पद्य या भगवती आराधनाको गाथाका अंश दिया है। प्रारम्भकी ९० कथाएँ प्रायः भ० आ० के गाथाक्रमके अनुसार हैं। इन कथाओं तक कोशका प्रथम भाग समाप्त होता
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