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________________ २५८ भगवती आराधना 'सवि आउगे' आयुषि सति । 'सदिबले' सति बले । 'जाओं' याः 'विविहाओ' विचित्राः । 'भिक्खुपडिमाओ' भिक्षप्रतिमाः। 'ताओ वि' ताश्च । 'ण बाते' न पीडां जनयंति महतीं। कस्य ? 'जहाबलं सल्लिहंतस्स' यथाबलं तनूकुर्वतः बलमन्तरेण कुर्वतः प्रारब्धमहाक्लेशस्य योगभङ्गः संक्लेशश्च महान् जायते इति भावः ॥२५॥ शरीरसल्लेखनाहेतुषु उपन्यस्तेषु के उत्कृष्टा इत्यत्राह सल्लेहणा सरीरे तवोगुणविधी अणेगहा भणिदा । आयंबिलं महेसी तत्थ दु उक्कस्सयं विति ॥२५२॥ 'सल्लेहणा शरीरे' शरीरसल्लेखनानिमित्तं शरीरे सल्लेखना इत्युच्यते । 'तवोगुणविधी' तपःसंज्ञितो गुणविकल्पः । 'अणेगहा भणिवा' अनेकधा निरूपितः अतीतसूत्रः । 'तत्थ' तत्र । 'महेसी' महर्षयः । 'आयंबिलं दु' आचाम्लाश'नमेव । 'उक्कस्सगं' उत्कृष्टमिति । 'ति' ब्रुवन्ति ॥२५२॥ टी०-आयुके होते हुए और बलके होते हुए अपनी शक्तिके अनुसार शरीरको कृश करने वाले यतिके जो विविध भिक्षु प्रतिमाएँ है, वे भी महान् कष्ट नहीं देती। जो शक्तिके बिना करता है उसे प्रारम्भ में ही महान् क्लेश होनेसे योगका भंग तथा महा संक्लेश परिणाम होते हैं ॥२५१॥ विशेषार्थ-आशाधरजीने एक गाथाके द्वारा उसका अर्थ करते हुए भिक्षु प्रतिमाओंका कथन किया है जो इस प्रकार है आत्माकी सल्लेखना करने वाला, धैर्यशाली, महासत्त्वसे सम्पन्न, परीषहोंका जेता, उत्तम संहननसे विशिष्ट, क्रमसे धर्मध्यान और शुक्ल ध्यानको पूर्ण करता हुआ मुनि जिस देशमें रहता है उस देशके लिये दुर्लभ आहारका व्रत ग्रहण करता है कि यदि एक मासमें ऐसा आहार मिला तो मैं भोजन करूंगा, अन्यथा नहीं करूंगा। उस मासके अन्तिम दिन वह प्रतिमा योग धारण करता है। यह एक भिक्षु प्रतिमा है। इस प्रकार पूर्वोक्त आहारसे सौगुने उत्कृष्ट अन्य-अन्य भोजन सम्बन्धी नियम लेता है । ये नियम दो, तीन, चार, पाँच, छै और सात मासको लेकर होते है । अर्थात् दो या तीन आदि सात मासमें ऐसा आहार मिलेगा तो आहार करूँगा । सर्वत्र नियमोंके अन्तिम दिन प्रतिमा योग धारण करता है। ये सात भिक्षु प्रतिमा हैं। पुनः पूर्व आहार से सौगुना उत्कृष्ट दुर्लभ अन्य-अन्य आहारका नियम सात-सात दिनका तीन बार ग्रहण करता है। अर्थात् सात दिनमें ऐसा मिला तो ग्रहण करूंगा। ये तीन भिक्षु प्रतिमा हैं। फिर रात दिन प्रतिमायोगसे स्थित रहकर पीछे रात्रि प्रतिमायोग धारण करता है। ये दो भिक्षु प्रतिमा हैं। इनके धारण करनेपर पहले अवधि मनःपर्यय ज्ञानको प्राप्त करनेके पीछे सूर्योदय होनेपर केवलज्ञानको प्राप्त करता है। इस तरह बारह भिक्षु प्रतिमायोगसे स्थित होकर पश्चात् रात्रि प्रतिमायोग धारण करता है ॥२५१॥ ऊपर जो शरीरकी सल्लेखनाके हेतु कहे हैं उनमें कौन उत्कष्ट हैं, यह कहते हैं गा०-शरीरकी सल्लेखनाके निमित्त अनेक प्रकार तप नामक गुणके विकल्प पूर्व गाथाओं के द्वारा कहे हैं। उनमेंसे महर्षि आचाम्लको ही उत्कृष्ट कहते हैं ॥२५२।। १. शनाय च आ० । -शनाख्यं च मु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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