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________________ २४६ भगवती आराधना नैरागमिष्यति तत्प्रवेश दिने गृहसंस्कारं सकलं करिष्यामः इति चेतसि कृत्वा यत्संस्कारितं वेश्म तत्पाहुडिंगमित्युच्यते । तदागमानुरोधेन गृहसंस्कारकालापहासं कृत्वा वा संस्कारिता वसतिः । यद्गृहं अन्धकारबहुलं तत्र प्रकाशसंपादनाय यतीनां छिद्रीकृतकुड्यं, अपाकृतफलकं, सुविन्यस्तप्रदीपकं वा तत्पादुकारशब्देन भण्यते । द्रव्यक्रीतं भावक्रीतं इति द्विविधं क्रीतं वेश्म, सचित्तं गोवलीवर्द्धादिकं दत्वा संयतार्थ क्रीतं, अचित्तं वा घृतगुडखंडादिकं दत्वा क्रीतं द्रव्यक्रीतं । विद्यामन्त्रादिदानेन वा क्रीतं भावक्रीतं । अल्पमृणं कृत्वा वृद्धिसहितं अवृद्धिकं वा गृहीतं संयतेभ्यः पामिच्छं उच्यते । मदीये वेश्मनि तिष्ठतु भवान् युष्मदीयं तावद्गृहं यतिभ्यः प्रयच्छेति गृहीतं परियट्टमित्युच्यते । कुडचाद्यर्थं कुटीरककटादिकं स्वार्थ निष्पन्नमेव यत्संयतार्थमानीतं तदभ्यहिडमुच्यते । तद्विविधमाचरितमनाचरितमिति । दूरदेशाद् ग्रामान्तरात्द्वानीतमनाचरितं इतरदाचरितं । इष्टकादिभिः, मृत्पिडेन, वृत्या, कवाटेनोपलेन वा स्थगितं अपनीय दीयते यत्तदुद्भिन्नं । निश्रेण्यादिभिरारुह्य इत आगच्छत युग्माकमियं वसतिरिति या दीयते द्वितीया तृतीया वा भूमिः सा मालारोहमित्युच्यते । राजामात्यादिभिर्भयमुपदर्थं परकीयं यद्दीयते तदुच्यते अच्छेज्जं इति । अनिसृष्टं द्विविधं । गृहस्वामिना अनियुक्तेन या दीयते वसतिः यदस्वामिनापि वालेन पवशवर्तिना दीयते सोभय्यप्यनिसृष्टेति उच्यते । उद्मदोषा निरूपिताः । उत्पादनदोषां निरूप्यते - पंचविधानां धात्रीकर्मणां अन्यतमेनोत्पादिता वसतिः । काचिद्दारकं स्नप वनाये घरको संयमियोंके लिए स्थापित करना ठविद दोष है । अमुक मुनि जितने दिनोंमें आवेंगे, उनके प्रवेश करनेके दिन घरकी सब सफाई आदि करायेंगे, ऐसा चित्तमें विचारकर बनवाया घर 'पाहुडिंग' कहा जाता है । अथवा मुनिके आनेके अनुरोधसे घरका संस्कार करनेका जो समय नियत किया था उस समय से पूर्व संसार करना पाडुडिंग दोष । जिस घर में बहुत अन्धकार रहता है उसमें मुनियोंके लिए बहुत प्रकाश लानेके उद्देशसे दीवारमें छेद करना, लकड़ीका पटिया हटाना, दीपक रखना पादुकारदोष है खरीदा हुआ दो प्रकारका होता है द्रव्यकृत और भावकृत । सचेतन गाय बैल वगैरह देकर मुनिके लिए खरीदा गया अथवा अचित्त घी गुड़ खाँड़ आदि देकर खरीदा गया घर द्रव्यकृत है । विद्या मंत्र आदि देकर खरीदा गया घर भावकृत है । विना व्याजका अथवा व्याज पर थोड़ा सा ऋण लेकर मुनियोंके लिए लिया गया घर पामिच्छ कहा जाता है। आप मेरे घरमें रहें, अपना घर यातियोंको देदें इस प्रकार ग्रहण किया घर परिकहता है । अपनी दीवार आदिके (?) लिए जो तैयार या उसे मुनिके लिए लाना अभ्यहिड कहाता है | उसके दो भेद हैं आचरित और अनाचरित । जो दूर देशसे या अन्य ग्रामसे लाया गया वह नाचरित है शेष आचरित है । जो घर इट आदिसे, मिट्टी के ढेलोंसे, वासे, कपाट से या पत्थरसे ढपा है इनको हटाकर दिया गया वह घर उद्भिन्न दोषसे युक्त है । सीढ़ी वगैरह से ऊपर चढ़कर 'यहाँ आओ, आपकी यह वसति है' इस प्रकारसे जो दूसरे या तीसरे खण्ड की भूमि दी जाती है उसे मालारोहण कहते हैं । राजा मंत्री आदिके द्वारा भय दिखलाकर जो दूसरे की वसति दी जाती हैं । वह अच्छेज्ज है । अनिसृष्टके दो भेद हैं । घरके स्वामीके द्वारा जो नियुक्त नहीं है ऐसे व्यक्तिके द्वारा जो वसति दी जाये वह अनिसृष्ट है । और जो पराधीन वालक स्वामी के द्वारा दी जाए वह भी अनिसृष्ट है । ये उद्गमदोष कहे । उत्पादन दोष कहते हैं—धायके पाँच काम हैं— कोई बालकको नहलाती है । कोई उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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