SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विजयोदया टीका २४७ यति, भूषयति, क्रीडयति, आशयति स्वापयति वा। वसत्यर्थमेवोत्पादिता वसतिर्धात्रीदोषदुष्टा । नामान्तरान्नगरान्ता राच्च देशादन्यदेशतो वा संबन्धिनां वार्तामभिधायोत्पादिता दूतकोत्पादिता । अंगं, स्वरो, व्यञ्जनं, लक्षणं, छिन्नं, भौम, स्वप्नोऽन्तरिक्षमिति एवंभूतनिमित्तोपदेशेन लब्धा वसतिनिमित्तदोषदृष्टा । आत्मनो जाति, कुलं, ऐश्वर्यं वाभिधाय स्वमाहात्म्यप्रकटनेनोत्पादिता वसतिराजीवशब्देनोच्यते । भगवन्सर्वेषां आहारदानाद्वसतिदानाच्च पुण्यं किमु महदुपजायते इति पृष्टो न भवतीत्युक्ते गृहिजनः प्रतिकूलवचनरुष्टो वसतिं न प्रयच्छेदिति एवमिति तदनुकूलमुक्त्वा योत्पादिता सा वणिगवा शब्देनोच्यते । अष्टविधया चिकित्सया लब्धा चिकित्सोत्पादिता। क्रोधोत्पादिता च । गच्छतामागच्छतां च यतीनां भवदीयमेव गृहमाश्रयः इतीयं वार्ता दूरादेवास्माभिः श्रुतेति पूर्व स्तुत्वा या लब्धा, वसनोत्तरकालं च गच्छन्प्रशंसां करोति पुनरपि वसति लप्स्ये इति । एवं उत्पादिता संस्तवदोषदुष्टा । विद्यया, मन्त्रेण, चूर्णप्रयोगण वा गृहिणं वशे स्थापयित्वा लब्धा, मूल कर्मणा वा भिन्नकन्यायोनिसंस्थापना मुलकर्म । विरक्तानां अनुरागजननं वा । उत्पादनाख्योऽभिहितो दोषः षोडशप्रकारः । अथ एषणादोषान्दश प्राह किमियं योग्या वसतिर्नेति शङ्किता। तदानीमेव सिक्ता सत्यालिप्ता सती धा छिद्रस्रुतजलप्रवाहेण वा, जलभाजनलोठनेन वा तदानीमेव लिप्ता वा म्रक्षितेत्युच्यते । सनित्तपथिव्या, अपां, 'वायौ हरितानां, बीजानां भूषण पहिनाती हैं। कोई खेल खिलाती है, कोई भोजन कराती है, कोई सुलाती है, इनमेंसे कोई एक कर्म करके प्राप्त की गई वसति धात्रोदोषसे दूषित है। अन्य ग्राम, अन्य नगर या देशान्तमें रहनेवाले सम्बन्धियोंकी कुशलवार्ता कहकर प्राप्त की गई बसत्ति दूतकर्मके द्वारा उत्पादित होनेसे दूतकर्म दोषसे दुष्ट है। अंग, स्वर, व्यञ्जन, लक्षण, छिन्न, भौम, स्वप्न और अन्तरिक्ष, इस प्रकार निमित्तोंके उपदेशसे-गृहस्थोंको शुभाशुभ बतलाकर प्राप्त की गई वसति निमित्त नामक दोषसे दुष्ट है। अपनी जाति, कुल अथवा ऐश्वर्यको कहकर अपना बड़प्पन प्रकट करके प्राप्त की गई वसति आजीव शब्दसे कही जाती है। भगवन् ! सबको आहार देने और वसति देनेसे क्या महान् पुण्य होता है ? ऐसा गृहस्थ पूछे तो, 'नहीं होता' ऐसा कहनेपर गृहस्थ प्रतिकूल वचनसे रुष्ट होकर वसति नहीं देगा' इस विचारसे उनके अनकल कहकर प्राप्त की गई वसति 'वणिगवा' शब्दसे कही जाती है। आठ प्रकारकी चिकित्साके द्वारा प्राप्त की गई वसति चिकित्सा दोषसे दुष्ट हैं। क्रोधादिके द्वारा प्राप्त की गई वसति क्रोध आदि दोषसे दुष्ट है। आने जानेआले यात्रियोंके लिए आपका ही घर आश्रय है यह बात हमने दूर देशसे ही सुनी है, इस प्रकार पहले स्तुति करके प्राप्त की गई अथवा निवास करनेके पश्चात् जाते समय प्रशंसा करना कि पुनः आनेपर वसति प्राप्त हो तो वह संस्तव दोषसे दुष्ट है। विद्या, मन्त्र या चूर्णके प्रयोगसे गृहस्थको वशमें करके प्राप्त की गई वसति विद्यादोष, मंत्रदोष और चूर्णदोषसे दुष्ट है, मूलकर्मके द्वारा प्राप्त की गई अथवा विरागियोंको राग उत्पन्न करके प्राप्त हुई वसति मूलकर्म दोषसे दुष्ट है। उत्पादन नामक सोलह प्रकारका दोष कहा । · दस एषणा दोष कहते हैं यह वसति योग्य है या नहीं, ऐसी शंका करना शंकित दोष है । जो वसति तत्काल ही सींची गई या लीपी गई है अथवा छिद्रसे बहनेवाले जलके प्रवाहसे या जलपात्रके लुड़कानेसे १. वाल्या आ० । अपां हरि-मु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy