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________________ भगवती आराधना . भगवान ऋषभदेवके पादमूलमें बोधको प्राप्त होकर मुक्ति गया ।।२०२१।। आगे इंगिणीमरणका कथन है इंगिणीमरण-इंगिणीमरणका इच्छुक साधु संघसे अलग होकर गुफा आदिमें एकाकी आश्रय लेता है उसका कोई सहायक नहीं होता। स्वयं अपना संस्तरा बनाता है। स्वयं अपनी परिचर्या करता है। उपसर्गको सहन करता है क्योंकि उसके तीन शभ संहननोंमेंसे कोई एक संहनन होता है। निरन्तर अनप्रेक्षारूप स्वाध्यायमें लीन रहता है। यदि पैर में कांटा या आंखमें धूल चली जाये तो स्वयं दूर नहीं करता। भूखप्यासका भी प्रतीकार नहीं करता। _प्रायोपगमन-प्रायोपगमनकी भी विधि इगिणीके समान है। किन्तु प्रायोपगमनमें तृणोंके संस्तरेका निषेध है। उसमें स्वयं तथा दूसरेसे भी प्रतीकार निषिद्ध है। जो अस्थिचर्ममात्र शेष रहता है वही प्रायोपगमन करता है। यदि कोई उन्हें पृथ्वी जल आदिमें फेंक देता है तो वैसे ही पड़े रहते हैं। बाल पण्डितमरण-भेद सहित पण्डित मरणका कथन करनेके पश्चात् बाल पण्डितमरणका कथन है । एक देश संयमका पालन करनेवाले सम्यग्दृष्टि श्रावकके मरणको बाल पण्डितमरण कहते हैं। उसके पाँच अणुव्रत और तीन गुणव्रत तथा चार शिक्षाबत ये बारह ब्रत होते हैं । दिविरति, देशविरति और अनर्थदण्डविरति ये तीन गुणव्रत है ॥२०७५|| और भोगपरिमाण, सामायिक, अतिथि संविभाग और प्रोषधोपवास ये चार शिक्षाव्रत है। तत्त्वार्थसूत्र में भी ये ही व्रत कहे हैं। किन्तु रत्नकरण्ड श्रावकाचारसे इसमें अन्तर है । श्रावक विधिपूर्वक आलोचना करके तीन शल्योंको त्याग अपने घरमें ही संस्तर पर आरूढ़ होकर मरण करता है । यह बालपण्डितमरण है । __ अन्तमें पण्डित पण्डित मरणका कथन है । जो मुनि क्षपक श्रेणी पर आरोहण करके केवलज्ञानी होकर मोक्ष लाभ करता है उसका पण्डित पण्डित मरण है। उसकी सब विधि कही है कि किस गुणस्थानमें किन प्रकृतियोंका क्षय करता है। केवलज्ञानी होनेपर क्या क्या करता है, आदि। अन्तमें कहा है कि समस्त आराधनाका कथन श्रुतकेवली भी करने में असमर्थ हैं। उक्त विषयपरिचयसे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस ग्रन्थका नाम आराधना क्यों रखा गया और क्यों उसके साथ भगवती जैसा आदरसूचक विशेषण लगाया गया। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्रको अखण्ड जिनशासनने मोक्षका मार्ग माना है। सम्यक् चारित्रमें ही तप भी गर्भित है। इनका वर्णन अनेक जिनागमोंमें है। किन्तु आराधना शब्दसे वहाँ उनका व्यवहार नहीं किया गया है । ग्रन्थकारने दूसरी गाथाके द्वारा आराधनाका स्वरूप कहा है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तपके उद्योतन, उद्यवन, निर्वहन, साधन और निस्तरणको आराधना कहते हैं। टीकाकारने अपनी टीकामें इन पाँचोंका स्वरूप स्पष्ट किया है। अन्तिम निस्तरण शब्दका अर्थ किया है सम्यग्दर्शन आदिको भवान्तरमें भी साथ ले जाना। इस ग्रन्थके अन्य व्याख्याकारोंके मतकी आलोचना टीकाकारने यद्यपि की है। तथापि उससे यह स्पष्ट होता है कि यतः इस ग्रन्थमें मुख्य रूपसे मरण समाधिका वर्णन है और जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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