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________________ विजयोदया टीका १५३ कानां इत्ययमर्थः । आवासयन्ति रत्नत्रयमात्मनीति कृत्वा सामायिकं, चतुर्विशतिस्तवो, वंदना, प्रतिक्रमणं, प्रत्याख्यानं, व्युत्सर्ग इत्यमीपां । तत्र सामायिकं नाम चतुर्विध नामस्थापनाद्रव्यभावभेदेन । निमित्तनिरपेक्षा कस्यचिज्जीवादेरध्याहिता संज्ञा सामायिकमिति नामसामायिकम् । सर्वसावद्यनिवृत्तिपरिणामवता आत्मना एकीभूतं शरीरं यत्तदाकारसादृश्यात्तदेवेदमिति स्थाप्यते यच्चित्रपुस्तादिकं तत्स्थापनासामायिकम् । आगमद्रव्यसामायिकं नाम 'श्रुतस्याद्यं सामायिकं नाम ग्रंथः, तदर्थज्ञो यः सामायिकाख्यात्मपरिणामप्रत्यवभासः प्रत्ययरूपेण सांप्रतमपरिणतः आत्मा। नो आगमद्रव्यसामायिकं नाम यत्त्रिविकल्पं ज्ञायकशरीरभावितद्वयतिरिक्तभेदेन । सामायिकज्ञस्य यच्छरीरं तदपि सामायिकज्ञानकारणं, आत्मेव शरीरमंतरेण तस्याभावात् । यस्य हि भावाभावी नियोगतो यदनुकरोति तत्तस्य कारणमिति हेतुफलव्यवस्था वस्तुषु । ततः प्रत्ययसामायिकस्य कारणत्वाच्छरीरं त्रिकालगोचरं सामायिकशब्दवाच्यं भवति । चारित्रमोहनीयक्षयोपशमविशेषसहायो य आत्मा भविष्यत्सर्वसावद्ययोगनिवृत्तिपरिणामः सोऽभिधीयते भाविसामायिकशब्देन । चारित्रमोहनीयाख्यं कर्म परिप्राप्तक्षयोपशमावस्थं नो आगमद्रव्यतद्वयतिरिक्तकर्म सामायिकमिति ग्राह्यं । आगमभावसामायिकं नाम प्रत्ययसामायिकं । नो आगमभावसामायिकं नाम सर्वसावद्ययोगनिवृत्तिपरिणामः । अयमिह गृहीतः । चतुर्विंशतिसंख्यानां तीर्थकृतामत्र भारते प्रवृत्तानां वृषभादीनां जिनवरत्वादिगुणज्ञानश्रद्धानपुरस्सरा आदि, उन्हें आवश्यक नहीं कहते । अथवा 'आवासयाण' का अर्थ आवासक है। जो आत्मामें रत्नत्रयका आवास कराते हैं-सामायिक, चतुविंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और व्युत्सर्ग। उनमेंसे नाम, स्थापना, द्रव्य और भावके भेदसे सामायिकके चार भेद है। निमित्तकी अपेक्षाके विना किसी जीव आदिका नाम सामायिक रखना नाम सामायिक है। सर्व सावद्यके त्याग रूप परिणाम वाले आत्माके द्वारा एकीभूत शरीरका जो आकार सामायिक करते समय होता है उस आकारके समान होनेसे 'यह वही है' इस प्रकार जो चित्र, पुस्त आदिमें स्थापना की जाती है वह स्थापना सामायिक है । द्वादशांग श्रुतका आद्य ग्रन्थका नाम सामायिक है । उसके अर्थका जो ज्ञाता है जिसे सामायिक नामक आत्म परिणामका बोध है किन्तु जो वर्तमानमें उस ज्ञानरूपसे परिणत नहीं है अर्थात् उसका उपयोग उसमें नहीं है वह आगम द्रव्य सामायिक है। नो आगम द्रव्य सामायिक ज्ञायक शरीर, भावि और तद्वयतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकार है । सामायिकके ज्ञाता का जो शरीर है वह भी सामायिकके ज्ञानमें कारण है क्योंकि आत्माकी तरह शरीरके विना भी ज्ञान नहीं होता। जिसके होने पर जो नियमसे होता है और अभावमें जो नहीं होता, वह उसका कारण है । ऐसी वस्तुओंमें कार्य कारणभावकी व्यवस्था है । अतः ज्ञान सामायिकका कारण होनेसे त्रिकालवर्ती शरीर सामायिक शब्दसे कहा जाता है। चारित्र मोहनीय कर्मके क्षयोपशम विशेषकी सहायतासे जो आत्मा भविष्यमें सर्वसावद्ययोगके त्यागरूप परिणाम वाला होगा उसे भावि सामायिक शब्दसे कहा जाता है । जो चारित्र मोहनीय नामक कर्म क्षयोपशम अवस्थाको प्राप्त है वह नोआगमद्रव्य तद्वयतिरिक्त सामायिक है। प्रत्यय रूप सामयिक आगमभाव सामायिक है। और सर्वसावद्य योगके त्यागरूप परिणाम नोआगमभाव सामायिक है। यहाँ इसीको ग्रहण किया है। इस भारतमें हुए वषभ आदि चौबीस तीर्थंकरोके जिनवरत्व आदि गुणोंके ज्ञान और श्रद्धान २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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