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________________ १४४ भगवती आराधना 'उवहाणे' अवग्रहः । यावदिदमनुयोगद्वारं निष्ठामुपैति तावदिदं मया न भोक्तव्यं, इदं अनशनं चतुर्थषष्ठादिकं करिष्यामीति संकल्पः । स च कर्म व्यपनयतीति विनयः । 'बहुमाणे' सन्मानं । शुचेः कृतांजलिपुटस्य अनाक्षिप्तमनसः सादरमध्ययनं । 'तह तथा। 'अणिण्हवणे' अनिह्नवश्च निह्नवोऽपलापः । कस्यचित्सकाशे श्रुतमधीत्यान्यो गुरुरित्यभिधानमपलापः । वंजण अस्थ तदुभये' व्यंजनं शब्दप्रकाशनं, अर्थः शब्दवाच्यः, तदुभयशब्देन व्यंजनमर्थश्च निदिश्यते। वंजण अत्यतभये व्यंजनं च अर्थश्च तभयं चेति द्वद्वे कृते सर्वो द्वंद्वो विभाषया एकवद भवतीति एकवदभावार्थस्य एकवचनं कृतं । अर्थशब्दस्य अजाद्यदंतत्वादल्पान्तरत्वाच्च पूर्वनिपातप्रसंग इति चेन्न, सर्वतोऽभ्यहितं पूर्व निपतति इति व्यंजनशब्दः पूर्व प्रयुज्यते । कथमयहितं ? स्वयं परप्रत्ययहेतुत्वात्स्वयं च शब्दश्रुतादेवार्थयाथात्म्यमति परं चावबोधयति । अत्र च 'वंजणअत्यतदुभये सुद्धी' इति शेषः । तत्र व्यंजनशुद्धिर्नाम यथा गणधरादिभिर्वात्रिंशद्दोषवजितानि सूत्राणि कृतानि तेषां तथैव पाठः । शब्दश्रुतस्यापि व्यज्यते ज्ञायते अनेनेति विग्रहे ज्ञानशब्देन गृहीतत्वात् तन्मूलं हि श्रुतज्ञानं । उपधानका अर्थ अवग्रह है। जब तक आगमका यह अनुयोगद्वार समाप्त नहीं होता तब तक मैं अमुक वस्तु नहीं खाऊँगा। या यह अनशन या चतुर्थ अथवा षष्ठम उपवास करूंगा इस प्रकारका संकल्प अवग्रह है । वह भी कर्मको दूर करता है अतः विनय है। . बहुमाणका अर्थ सन्मान है। पवित्र हो, दोनों हाथ जोड़ और मनको निश्चल करके सादर अध्ययन बहुमान है। निह्नव अपलापको कहते हैं। किसीके पासमें अध्ययन करके उससे अन्यको गुरु कहना है अपलाप है। __ व्यंजन शब्दके प्रकाशनको कहते हैं। शब्दके वाच्यको अर्थ कहते हैं । 'तदुभय शब्दसे व्यंजन और अर्थ कहे जाते हैं। 'व्यंजन और अर्थ और तदुभय' इस प्रकार द्वन्द्व समास करनेपर सब द्वन्द्वोंमें विकल्पसे एकवद्भाव होता है इसलिये एक वचन किया है। शंका-अर्थ शब्दके आदिमें अच् होनेसे और अल्प अच्वाला होनेसे पूर्व निपातका अर्थात् प्रथम रखनेका प्रसंग आता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि जो सबसे पूज्य होता है वह प्रथम रखा जाता है इसलिये व्यंजन शब्दका प्रयोग पहले किया है। शंका-व्यंजन सबसे पूज्य क्यों है ? समाधान-व्यंजन अर्थात् शब्द स्वयं दूसरोंको ज्ञान कराने में हेतु है, और स्वयं शब्द श्रुत से ही वस्तुके यथार्थ स्वरूपको जानता है तथा दूसरोंको ज्ञान कराता है। ___ यहाँ व्यंजन अर्थ और तदुभयके साथ शुद्धि शब्द लगाना चाहिये । गणधर आदिने जैसे बत्तीस दोषोंसे रहित सूत्र रचे हैं उनका वैसा ही पाठ व्यंजन शुद्धि है। 'व्यज्यते' अर्थात् जिसके. द्वारा जाना जाता है ऐसा विग्रह करनेपर ज्ञान शब्दसे शब्दश्रुतका भी ग्रहण होता है क्योंकि श्रुतज्ञानका मूल शब्द है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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