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________________ विजयोदया टीका ६५ गोशब्देन न महिष्यादयो भयंते । अथवा पाउग्गगमणमरणं इति पाठः । भवांतकरणप्रायोग्यं संहननं संस्थानं च इह प्रायोग्यशब्देनोच्यते । अस्य गमनं प्राप्तिः, तेन कारणभूतेन यन्नित्यं मरणं तदुच्यते पाउग्गगमणमरणमिति । भज्यते सेव्यते इति भक्तं, तस्य पइण्णा त्यागो भत्तपइण्णा । इतरयोरपि भक्तप्रत्याख्यानसंभवेऽपि रूढिवशान्मरणविशेषे एव शब्दोऽयं प्रवर्तते। इंगिणीशब्देन इंगितमात्मनो भण्यते स्वाभिप्रायानुसारेण स्थित्वा प्रवयंमानं मरणं इंगिणीमरणं । तिविहं त्रिविधं त्रिप्रकारं। पंडितमरणं कस्य तद्भवति? 'साधुस्स साधोः 'जधुत्तचारस्स' यथा येन प्रकारेण उक्तं श्रुते तथा चरितु शीलं यस्य साधोस्तस्येति यावत् । सदाचारः सर्व एव जनः संयतोऽसंयतश्च लोके साधुशब्दवाच्यः, इति संयतपरिग्रहाथं यथोक्तचारित्वविशेषणं कृतम् । इतरयोर्बालमरणबालबालयोरित्यनयोः स्वामित्वसूचनार्थगाथा अविरदसम्मादिट्ठी मरंति बालमरणे चउत्थम्मि । मिच्छादिट्ठी य पुणो पंचमए बालबालम्मि ॥२९॥ अविरसदम्मादिदी इति प्रसिद्धार्थत्वान्न व्याख्येयं । अत्रावसरे इदं चोद्यमाशंक्यते । वोच्छं आराषणं कमसो इति प्रतिज्ञातं । सा च द्विप्रकारा दर्शनाराधना चारित्राराधना चेति । तद्वयाख्यानमकृत्वा मरणविकल्पालेकर है किन्तु गौ शब्दसे भैंस आदि नहीं कहे जा सकते। अथवा 'पाउग्गगमणमरणं' पाठ है। यहाँ प्रायोग्य शब्दसे संसारका अन्त करनेके योग्य संहनन और संस्थान कहे जाते हैं। उसके गमन अर्थात् प्राप्तिको प्रायोग्यगमन कहते हैं। उसके कारण होनेवाले मरणको प्रायोग्यगमन मरण कहते हैं । 'भज्यते' अर्थात् जो सेवन किया जाये वह भक्त है। उसकी 'पइण्णा' अर्थात् त्याग भत्तपइण्णा है। भोजनका त्याग शेष दोनों मरणोंमें भी सम्भव है। फिर भी रूढ़िवश भत्तपइण्णा शब्द मरण विशेषका ही बोधक होता है। इंगिणी शब्दसे आत्माका इंगित अर्थात् संकेत कहा जाता है। अपने अभिप्रायके अनुसार रहकर होनेवाला मरण इंगिणीमरण है। इस तरह पण्डितमरण तीन प्रकार का है। पण्डितमरण किसके होता है ? श्रुतमें जिस प्रकारसे कहा है उसी प्रकारसे आचरणशील साधुके होता हैं। सभी सदाचार वाले मनुष्य, वे संयमी हो या असंयमी, लोकमें साधु शब्दसे कहे जाते हैं। इसलिये संयमीका ग्रहण करनेके लिए 'यथोक्तचारी' विशेषण दिया है ॥२८॥ विशेषार्थ-अपने पैरोंसे चलकर अर्थात् संघसे निकल कर योग्य देशमें आश्रय लेना पादोपगमन है। इसमें न स्वयं अपनी सेवा करता है और न दूसरेसे कराता है। भक्त प्रतिज्ञामरणमें स्वयं भी अपनी वैयावृत्य करता है और दूसरेसे भी कराता है । इंगिणीमरणमें अपनी वैयावृत्य स्वयं ही करता है दूसरेसे नहीं कराता। पादोपगमनको प्रायोपगमन भी कहते हैं और प्रायोपवेशन भी कहते हैं । 'प्राय' का अर्थ संन्यास है ।।। अब शेष बालमरण और बालबालमरणके स्वामियोंको कहते हैं गाथा—अविरत सम्यग्दृष्टि चतुर्थ बालमरणमें मरते हैं। मिथ्यादृष्टि पाँचवें बालबालमरणमें मरते हैं ॥२९॥ टो०-इस गाथाका अर्थ प्रसिद्ध होनेसे इसकी व्याख्या नहीं करते। . - शंका-यहाँ यह शंका करते हैं। ग्रन्थकारने 'क्रमसे आराधना को कहूँगा' ऐसी प्रतिज्ञा की है। वह आराधना दो प्रकार की है-दर्शनाराधना और चारित्राराधना । उनका व्याख्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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