SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ भगवती आराधना तृतीयस्य स्वामित्वं कस्मात्प्रदर्श्यते क्रमोल्लंघने प्रयोजनं वाच्यम् ? इति चेदुच्यते-उत्कृष्टजघन्यपंडितत्वमध्यवृत्तिपंडितत्वमित्येत दाख्यातू उभयावधिप्रदर्शन क्रियते । अथवा पंडितमरणे बहवक्तव्यमस्तीति तत्सान्यासिक व्यवस्थाप्य अल्पवक्तव्यतया बालपंडितमेव प्राग व्याचष्टे । कतिविधं पंडितमरणं किं स्वामिकं वा इत्यारेकायां इयं गाथा पायोपगमणमरणं इत्यादिका पायोपगमणमरणं भत्तपइण्णा य इंगिणी चेव । तिविहं पंडितमरणं साहुम्स जहुत्तचारिस्स ॥२८॥ पादाभ्यामुपगमनं ढोकनं तेन प्रवर्तितं मरणं पादोपगमनमरणं । इतरमरणयोरपि पादाभ्यामुपगमनमस्तीति त्रैविध्यानुपपत्तिरिति चेन्न मरणविशेषे वक्ष्यमाणलक्षणे रूढिरूपेणायं प्रवर्तते, रूढी च क्रिया उपादीयमाना शब्दव्युत्पत्त्यथैव । यथा गच्छतीति गौरिति शब्दव्युत्पत्तौ क्रियमाणायामपि गमनक्रियाकर्तृतास्तीति स्वामी क्यों कहा ? क्रमका उल्लंघन करनेका प्रयोजन क्या है यह कहना चाहिए ? समाधान-उत्कृष्ट और जघन्य पंडितत्वके मध्य में रहनेवाला पण्डितत्व है यह कहनेके लिए दोनों अवधियोंको बतलाया है। अथवा पण्डितमरणके सम्वन्धमें बहुत कहना है इसलिए उसे अलग रखकर थोड़ा कथन होनेके कारण बालपण्डितमरण को ही पहले कहा है ।।२७।। पण्डितमरणके कितने भेद हैं और वह किसके होता है, यह कहते हैं गाथा-पादोपगमन मरण भक्तप्रतिज्ञा और इंगिणीमरण इस प्रकार पण्डितमरण तीन प्रकार का है। वह शास्त्रमें कहे अनुसार आचरण करनेवाले साधु के होता है ॥२८॥ टो०-पाद अर्थात् पैरो से, उपगमन पूर्वक होनेवालेको पादोपगमन मरण कहते हैं। शंका-शेष दोनों मरणोंमें भी पैरोंसे उपगमन होता है अतः तीन भेद नहीं बनते ? समाधान-यह पादोपगमन रुढ़िरूपसे मरण विशेषमें प्रवृत्त होता है, इसका लक्षण आगे कहेंगे। रूढ़ शब्दोंमें ग्रहण की गई क्रिया शब्दकी व्युत्पत्तिके लिए ही होती है। जैसे, जो चलती है वह गौ है । इस प्रकार गौ शब्दकी व्युत्पत्ति करने पर भी यद्यपि यह व्युत्पत्ति गमन क्रियाको सं० टि०-सब प्रतियोंमें इसके पश्चात एक नीचे लिखी गाथा आती है उसका नम्बर भी २८ है। हमने गाथा २७ की जो उत्थानिका दी है वह भी इस २८ नम्बरकी उत्थानिका है। तथा ऊपर टीकामें विरताविरत परिणामसे जीव द्रव्यका ज्ञान हो जाता है आदि जो शङ्का प्रारम्भ होती है वहाँसे टीकाका भाग इस गाथा २८ की टीकाके रूपमें दिया है । गाथा इस प्रकार है पंडिदपंडिदमरणं च पंडिदं बालपंडिदं चेव । एवाणि तिण्णि मरणाणि जिणा णिच्चं पसंसति ॥ अर्थ-पण्डित पण्डित मरण, पण्डित मरण और बाल पण्डित मरण इन तीन मरणोंकी जिनदेव सदा प्रशंसा करते हैं। इस गाथाके साथ न तो उत्थानिकाका कोई सम्बन्ध है और न टीकाका कोई सम्बन्ध है । अतः यह गाथा प्रक्षिप्त है । पं० आशाधरने गाथा २६ की अपनी टीकामें लिखा भी है-'तथा चान्यस्मादानीय सूत्रे पठन्ति' अर्थात अन्यत्रसे लेकर पढ़ते हैं इसके पश्चात् ही उन्होंने उक्त गाया दी है। इसलिये हमने इसे मूलमें नहीं रखा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy