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________________ विजयोदया टीका atsaसरः पंचत्वस्य । प्राणिनः प्राणेभ्यो वियोगो मरणं इति चेत्तदेकविधमेव सामान्यतः । प्राणभेदापेक्षयेति चेद्दशप्रकारतापद्यते । उदयप्राप्तकर्मपुद् गलगलनं मरणं इति यदि गृह्यते प्रतिसमयं गलनान्न पंचता । गुणभेदापेक्षया जीवान्पंचधा व्यवस्थाप्य तत्संबंधेन पंचविधं मरणमुच्यते । अत्रान्या व्याख्या - प्रशस्ततमं प्रशस्ततरं, ईषत्प्रशस्तं अविशिष्टं, अविशिष्टतरं इति पंडितपंडितमरणादीनि केचिद् । व्याचक्षते । पंडितशब्दः प्रशस्तमित्यस्मिन्नर्थे क्व प्रयुक्तो दृष्टो येनैवं व्याख्यायते ? किं च आगमांतराननुगतं चेदं व्याख्यानं । ववहारे सम्मत्ते णाणे चरणे य पंडिदस्त तदा । पंडिदमरणं भणिदं चदुग्विधं तब्भवंति हि ॥' [ 1 इति वदता चतुःप्रकाराः पंडिता उपदर्शिताः । तेषां मध्ये अतिशयितं पांडित्यं यस्य ज्ञानदर्शनचारित्रेषु स पंडितपंडित इत्युच्यते । एतत्पांडित्यप्रकर्षरहितं पांडित्यं यस्य स पंडित इत्युच्यते । व्याख्यातं बाल्यं पांडित्यं च यस्य स भवति वालपंडितः तस्य मरणं बालपंडितमरणं । यस्मिन्न संभवति पांडित्यं चतुर्णामप्येकं असौ बालः । सर्वतो न्यूनो वालबालः तस्य मरणं बालबालमरणं । अथ के पंडित पंडिता येषां मरणं पंडितपंडितमिति भण्यते इत्यारेकायामाह - पंडिदपंडितमरणे खीणकसाया मरंति केवलिणो । विरदाविरदा जीवा मरंति तदियेण मरणेण ||२७|| ६१ जीवोंकी अपेक्षा पाँच भेद कैसे संभव हैं ? यदि कहोगे कि प्राणीका प्राणोंसे वियोग मरण है तो वह सामान्यसे एक ही प्रकार का है । प्राणभेदकी अपेक्षा लेना हो तो दस भेद हो सकते हैं ? यदि उदय प्राप्त कर्म पुद्गलोंके गलनेका नाम मरण है तो कर्म पुद्गलोंका गलन तो प्रति समय होता है अत: पाँच भेद नहीं बनते ? समाधान -- गुणभेदकी अपेक्षा जीवोंके पाँच भेद करके उनके सम्बन्धसे मरणके पाँच भेद कहे हैं । प्रशस्त, अन्य व्याख्याकार पण्डितपण्डितमरण आदि पाँच मरणोंको प्रशस्ततम प्रशस्ततर, ईषत् अविशिष्ट और अविशिष्टतर कहते हैं । हम उनसे पूछते हैं कि पण्डित शब्दका प्रशस्त अर्थ में प्रयोग कहाँ देखा है जिससे आप ऐसी व्याख्या करते हैं । तथा यह व्याख्यान अन्य आगमोंके अनुकूल नहीं है । आगममें कहा है— व्यवहार में, सम्यक्त्वमें ज्ञानमें और चारित्रमें पण्डितके मरणको पण्डितमरण कहते हैं अतः उसके चार भेद हैं । इस प्रकार चार प्रकारके पण्डित कहे हैं । उनके मध्य में जिसका पाण्डित्य ज्ञान, दर्शन और चारित्रमें अतिशयशाली है उसे पण्डितपण्डित कहते हैं । उसके पाण्डित्यके प्रकर्षसे रहित जिसका पाण्डित्य होता है उसे पण्डित कहते हैं । पूर्वमें व्याख्यात बालपन और पाण्डित्य जिसमें होते हैं वह बालपण्डित है । उसका मरण बालपण्डितमरण है । और जिसमें चारों प्रकारके पाण्डित्य में से एक भी पाण्डित्य नहीं है वह बाल है और जो सबसे हीन है वह बालबाल मरण है ||२६|| Jain Education International पण्डित पण्डित कौन हैं जिनका मरण पण्डितपण्डित कहा जाता है ? ऐसी शङ्का होनेपर आचार्य कहते हैं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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