SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विजयोदया टीका ५९ मम सर्वत्र लाभो जायते इति लाभमानं भावयतो मरणं लाभवशातमरणम् । तपो मयानुष्ठीयते अन्यो मत्सदृशश्चरणे नास्ति इति संकल्पयतस्तपोमानवशार्तमरणं भवति । माया पंचविकल्पा निकृतिः, उपधिः, सातिप्रयोगः, प्रणिधिः प्रतिकुंचनमिति । अतिसंधानकुशलता धने कार्य वा कृताभिलाषस्य वंचना निकृतिः उच्यते । सद्भावं प्रच्छाद्य धर्मव्याजेन स्तन्यादिदोषे प्रवृत्तिरुपांधसंजिता माया। अर्थेषु विसंवादः स्वहस्तनिक्षिप्तद्रव्यापहरणं, दूषणं, प्रशंसा वा सातिप्रयोगः । प्रतिरूपद्रव्यमानकरणानि, ऊनातिरिक्तमानं; संयोजनया द्रव्यविनाशनमिति प्रणिधिमाया। आलोचनं कुर्वतो दोषविनिगृहनं प्रतिकुंचनमाया । एवंविधं मायावशार्तमरणं । उपकरणेषु, भक्तपानक्षेत्रेषु, शरीरे, निवासस्थानेषु च इच्छां मूर्छाच वहतो मरणं लोभवशार्तमरणं । हास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्सास्त्रीपुंन्नपुंसकवेदे मूढमतेमरणं नोकषायवशातैमरणं । नोकषाय'वशार्तमरणमुपगतो जायते मनुजतिर्यग्योनिषु, असुरेषु, कंदर्पेषु, किल्बिषिकेषु च । मिथ्यादृष्टेरेतदेव बालमरणं भवति । दर्शनपंडितोऽपि अविरतसम्यग्दृष्टिः संयतासंयतोऽपि वशार्तमरणमुपैति तस्य तद्वालपंडितं भवति दर्शनपंडितं वा । अप्रतिषिद्धे अननुज्ञाते च द्वे मरणे 'विप्पाणसंगिद्धतुट्ठमितिसंज्ञिते कृते प्रवर्तेते। दुर्भिक्षे, कांतारे, दुरुत्तरे, पूर्वशत्रुभये, दुष्टनृपभये, स्तेनभये, तिर्यगुपसर्ग एकाकिनः सोढुमशक्ये ब्रह्मव्रतनाशादिचारित्रदूषणे च बेरोक गति हैं इस प्रकार प्रज्ञाके मदसे मत्तके मरणको प्रज्ञामानवश आर्तमरण कहते हैं। व्यापार करनेपर मुझे सर्वत्र लाभ होता है इस प्रकार लाभका मान करते हुए होनेवाले मरणको लाभमानवशार्तमरण कहते हैं । मैं तप करता हूँ, तपश्चरणमें मेरे समान दूसरा नहीं है। ऐसा संकल्प करते हुए होनेवाले मरणको तपमानवशार्तमरण कहते हैं। मायाके पाँच भेद हैं-निकृति, उपधि, सातिप्रयोग, प्रणधि और प्रतिकुञ्चन । दूसरोंकी गुप्त बातोंकी खोजमें कुशलता, तथा धन अथवा किसी कार्यकी अभिलाषावालेको ठगना निकृति है। समीचीन भावको छिपाकर धर्मके बहानेसे चोरी आदि दोषोंमें प्रवृत्तिको उपधिनामक माया कहते है। अर्थ (धन) के विषयमें झगड़ा करना, अपने हाथमें रखे द्रव्यको हर लेना, प्रयोजनके अनुसार दोष लगाना या प्रशंसा करना सातिप्रयोग माया है । असली वस्तुमें उसके समान नकली वस्तु मिलाना, कमती बढ़ती तोलना, मिलावटके द्वारा द्रव्यका विनाश करना ये प्रणिधिमाया है। आलोचना करते समय दोषोंको छिपाना प्रतिकुंचन माया है। इस प्रकारके मायाचारपूर्वक होनेवाले मरणको मायावशार्तमरण कहते हैं। उपकरणोंमें, खानपानके क्षेत्रोंमें, शरीरमें, निवास में इच्छा और ममत्व रहते हुए होनेवाले मरणको लोभवशार्तमरण कहते हैं। हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और पुरुषवेदको लेकर जिसकी बुद्धि मूढ़ हो गई है उसका मरण नोकषायवशावर्तमरण है। नोकषायवशार्तमरणसे मरा हुआ प्राणी मनुष्य योनि, तिर्यञ्चयोनि, तथा असुर, कन्दर्प और किल्विपजातिके देवोंमें उत्पन्न होता है । मिथ्यादृष्टिके होनेवाला यही मरण बालमरण होता है । दर्शनपण्डित, अविरतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयतके भी वशार्तमरण होता है उनका वह मरण बालपण्डितमरण अथवा दर्शनपण्डितमरण होता है। पिप्पणास और गिद्धपट नामके दो मरण ऐसे हैं जिनका निषेध भी नहीं है अनुज्ञा भी नहीं है। दुर्भिक्षमें, भयानक जंगलमें, पूर्वशत्रुका भय होनेपर, या दुष्ट राजाका भय होनेपर, चोरका भय होनेपर, तिर्यश्चकृत उपसर्ग होनेपर जिसे अकेले सहन करना अशक्य है, या ब्रह्मचर्य १. वशति-अ० अ० ज० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy