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________________ ५८ । भगवती आराधना रूपे संस्थाने वा रक्तस्य द्विष्टस्य वा मरणं, तेषामेव स्पर्श रागवतो द्वेषवतो वा मरणं, इति इंद्रियानिन्द्रियवशार्तमरणविकल्पाः । वेदणात्रसट्टमरणं द्विभेदं समासतः सातवेदनावशार्तमरणं असातवेदनावशार्तमरणमिति । शारीरे मानसे वा दुःखे उपयुक्तस्य मरणं दुःखवशार्तमरणमुच्यते । यो दुःखेन मोहमुपागतस्तस्य मरणमिति यावत् । तथा शारीरे मानसे वा सुखे उपयुक्तस्य मरणं सातवशार्तमरणं । - कषायभेदात्कषायवशार्तमरणं चतुर्विधं भवति । अनुबंधरोषो य आत्मनि परत्र उभयत्र वा मारणवशो' भवति । तस्य क्रोधवशार्तमरणं भवति । मानवशार्तमरणमष्टविधं भवति कुलेन, रूपेन, बलेन, धुतेन, ऐश्वर्यण, लाभेन, प्रज्ञया, तपसा वा आत्मानुमुत्कर्षयतो मरणमपेक्ष्य विख्याते विशाले उन्नते कुले समुत्पन्नोऽहमिति मन्यमानस्य मृतिः कुलमानवणार्तमरणम् । निरुपहतपंचेंद्रियसमग्रगावस्तेजस्वी प्रत्यग्रयौवनः सकलजनताचेतःसम्मदकररूप इति भावयतो मृतिः रूपवशार्तमरणं । वृक्षपर्वताद्युत्पाटनक्षमोऽहं योधवानह, मित्राणां च बलं ममास्ति इति बलाभिमानोदहनान्मानवशार्तमरणं । बहुपरिवारो बहुशासनोऽहं इति ऐश्वर्यमानोन्मत्तस्य मरणं मानवशार्तमरणं । लोकवेदसमयसिद्धान्तशास्त्राणि शिक्षितानि इति श्रुतमानोन्मत्तस्य मरणं श्रुतमानवशार्तमरणमुच्यते । तीक्ष्णा मम बुद्धिः सर्वत्राप्रतिहता इति प्रज्ञामत्तस्य मरणं प्रज्ञावशार्तमरणमुच्यते । व्यापारे क्रियमाणे आहारमें राग या द्वेष करते हुए मरण रसनेन्द्रियवसट्टमरण है। पूर्वोक्तदेव मनुष्य आदिको गन्धमें रागद्वेष करते हुए मरण घ्राणेन्द्रियवसट्टमरण है। उन्हींके रूप आकार आदिमें रागद्वेष करनेवालेका मरण चक्षुइन्द्रियवसट्टमरण है। उन्हींके स्पर्शमें रागद्वेष करनेवालेका मरण स्पर्शनेन्द्रियवसट्टमरण है । इस प्रकार इन्द्रिय और मनके वशसे होनेवाले आर्तध्यानपूर्वक मरणके भेद हैं । वेदनावसट्टमरणके संक्षेपसे दो भेद हैं-सातवेदनावशार्तमरण और असातवेदनावशार्तमरण । शारीरिक अथवा मानसिक दुःखमें उपयोग रहते हुए होनेवाले मरणको दुःखशार्तमरण कहते हैं । अर्थात् जो दुःखसे मोहको प्राप्त हुआ उसका मरण दुःभयशार्तमरण है । तथा शारीरिक अथवा मानसिक सुखमें उपयोग रहते हुए होनेवाला मरण सातवशात मरण है। · कषायके भेदसे कषायवशार्तमरणके चार भेद होते हैं। अपनेमें, दूसरेमें अथवा दोनोंमें मारनेके लिए उत्पन्न हुआ क्रोध मरणका कारण होता है। वह क्रोधवशार्तमरण है। मानवशआर्तमरणके आठ भेद हैं -कुल, रूप, बल, शास्त्र, ऐश्वर्य, लाभ, बुद्धि अथवा तपसे अपनेको बड़ा मानते हुए मरण होनेकी अपेक्षा ये आठ भेद होते हैं। मैं अति प्रसिद्ध विशाल उच्चकुलमें उत्पन्न हुआ हूँ ऐसा मानते हुए होनेवाले मरणको कुलमानवश आर्तमरण कहते हैं। मेरा शरीर सशक्त पाँच इन्द्रियोंसे पूर्ण है, तेजस्वी और नवयौवनसे सम्पन्न है, मेरा रूप समस्त जनताके चित्तको मर्दन करता है, ऐसी भावना होते हुए जो मरण होता है वह रूपवश आर्तमरण है। मैं वृक्ष पर्वत आदिको उखाड़ने में समर्थ हूँ, लड़नेमें समर्थ हूँ, मेरे साथ मित्रोंका बल है, इस प्रकार बलके अभिमानको धारण करते हुए होनेवाला मरण बलमानवश आर्तमरण है । मैं बहुत परिवार वाला हूँ मेरा शासन बहुतोंपर है इस प्रकार ऐश्वर्यके मानसे उन्मत्तका मारण ऐश्वर्यमान वशार्तमरण है। मैंने लोक, वेद, समय और सिद्धान्त सम्बन्धी शास्त्रोंको पढ़ा है इस प्रकार शास्त्रके मानसे उन्मत्तका मरण श्रुतमानवश आर्तमरण है। मेरी बुद्धि तीक्ष्ण है, सब विषयोंमें उसकी १. वा मरणवशो भवति अ०। वा मारणवशो भवति आ० ।-वशोपि मरणवशः भ-मु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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