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जैन आगम में दर्शन
पूर्वी स्थविरों द्वारा रचित ग्रन्थों को आगम की कोटि में रखने का निर्णय हुआ। किंतु उन्हें स्वत: प्रमाण नहीं माना गया। उनका प्रामाण्य परत: था। वे द्वादशांगी से अविरुद्ध हैं, इस कसौटी से कसकर उन्हें आगम की संज्ञा दी गई। उनका परत: प्रामाण्य था, इसलिए उन्हें अंगप्रविष्ट की कोटि से भिन्न रखने की आवश्यकता प्रतीत हुई। इस स्थिति के संदर्भ में आगम की अंग-बाह्य कोटि का उद्भव हुआ।' आगमों का अनुयोग में विभक्तिकरण ___ आगमों की व्याख्या 'अपृथक्त्वानुयोग' एवं 'पृथक्त्वानुयोग' उभय प्रकार से की जा सकती है। आर्यरक्षित से पूर्व आगमों की व्याख्या 'अपृथक्त्वानुयोग' से प्रचलित थी, अर्थात् एक ही सूत्र की व्याख्या चरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग एवं द्रव्यानुयोग इन चारों अनुयोग से करना ‘अपृथक्त्वानुयोग' है। यह व्याख्याक्रम बहुत जटिल और बुद्धिस्मृति सापेक्ष था। आर्यरक्षित ने देखा दुर्बलिका पुष्यमित्र जैसा मेधावी मुनि भी इस व्याख्याक्रम को याद रखने में श्रान्त-क्लांत हो रहा है तो अल्पमेधा वाले इसे कैसे याद रख पाएंगे? उन्होंने पृथक्त्वानुयोगका प्रवर्तन कर दिया अर्थात् अमुक सूत्र की व्याख्या अमुक अनुयोग से ही होगी। एक सूत्र की व्याख्या एक ही अनुयोग से होगी। यही पृथक्त्वानुयोग है। उन्होंने उपलब्ध आगमका पृथक्-पृथक् अनुयोगकेसाथसम्बन्ध स्थापित कर दिया। जैसे-चरणकरणानुयोग में कालिक श्रुत, ग्यारह अंग, महाकल्पश्रुत और छेदसूत्रों का समावेश किया। धर्मकथानुयोग में ऋषिभाषित, गणितानुयोग में सूर्यप्रज्ञप्ति और द्रव्यानुयोग में दृष्टिवाद का समावेश किया गया। आर्यरक्षित ने आगम अध्ययन की परम्परा में एक नया सूत्रपात किया। इसके फलस्वरूप अध्येताओं को तो सुविधा हुई किन्तु आगम का उत्तरोत्तर ह्रास भी होने लगा। आगमों की भाषा
जैन आगमों की भाषा अर्धमागधी है। भगवान् महावीर अर्धमागधी भाषा में धर्म का व्याख्यान करते थे।' अर्धमागधी प्राकृत भाषा का ही एक रूप है। इस भाषा को देवभाषा कहा गया है अर्थात् देवता अर्धमागधी भाषा में बोलते हैं।' प्रज्ञापना में इस भाषा का प्रयोग करने वाले को भाषार्य कहा गया है। यह मगध के आधे भाग में बोली जाती थी तथा इसमें अठारह 1. आचारांगभाष्य, भूमिका पृ. 15 विशेषावश्यकभाष्य II (ले. जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण, अहमदाबाद, वी.सं. 2489) गाथा 2286,2288, अपहुत्ते अणुओगोचत्तारिदुवार भासईएगो। पहुत्ताणुओगकरणेते अत्थातओउवोच्छिन्ना ।। देविंदवंदिएहिं महाणुभावेहिं रक्खियअज्जेहिं।
जुममासज्ज वियत्तोअणुओगोतोकहो चउहा।। 3. वही, II, गाथा 2 2 8 4 - 2295 4. समवाओ, 34/22, भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खइ। 5. अंगसुत्ताणि-2 (भगवई) भगवती, 5/93.देवा णं अद्धमागहाए भासाए भासंति। 6. उवंगसुत्ताणि (खण्ड-4) (पण्णवणा) 1/93 : भासारिया जेणं अद्धमागहाए भासाए भासंति।
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