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________________ आगमों में प्राप्त जैनेतर दर्शन 285 अक्रियावादी को नास्तिकवादी, नास्तिकप्रज्ञ एवं नास्तिकदृष्टि कहा गया है।' स्थानांगवृत्ति में अक्रियावादी को नास्तिक भी कहा गया है। स्थानांग सूत्र में अक्रियावादी के आठ प्रकार बतलाए गए हैं - 1. एकवादी-एक ही तत्त्व को स्वीकार करने वाले। 2. अनेकवादी-धर्म और धर्मी को सर्वथा भिन्न मानने वाले अथवा सकल पदार्थों को विलक्षण मानने वाले, एकत्व को सर्वथा अस्वीकार करने वाले। 3. मितवादी-जीवों को परिमित मानने वाले। 4. निर्मितवादी-ईश्वरकर्तृत्ववादी। 5. सातवादी-सुख से ही सुख की प्राप्ति मानने वाले, सुखवादी। 6. समुच्छेदवादी-क्षणिकवादी। 7. नित्यवादी-लोक को एकान्त मानने वाले। 8. असत् परलोकवादी-परलोक में विश्वास न करने वाले। स्थानांग में अक्रियावाद का प्रयोग अनात्मवाद एवं एकान्तवाद दोनों अर्थों में हुआ है। इन आठ वादों में छह वाद एकान्तदृष्टि वाले हैं। समुच्छेदवाद तथा असत्परलोकवाद-ये दो अनात्मवाद हैं। उपाध्याय यशोविजयजी ने धन॑श की दृष्टि से जैसे चार्वाक को नास्तिक कहा है, वैसे ही धर्मांश की दृष्टि से सभी एकान्तवादियों को नास्तिक कहा है धयंशे नास्तिको होको, बार्हस्पत्य: प्रकीर्तितः। धर्माशे नास्तिका ज्ञेया: सर्वेऽपि परतीर्थिकाः॥ स्थानांग में प्रस्तुत वादों का संकलन करते समय कौन-सी दार्शनिक धाराएं सामने रही होगी, कहना कठिन है किंतु वर्तमान में उन धाराओं के संवाहक दार्शनिक निम्न है1. एकवादी (1) ब्रह्माद्वैतवादी-वेदान्त। (2) विज्ञानाद्वैतवादी-बौद्ध । (3) शब्दाद्वैतवादी–वैयाकरण । ब्रह्माद्वैतवादी के अनुसार ब्रह्म, विज्ञानाद्वैतवादी के अनुसार विज्ञान और शब्दाद्वैतवादी के अनुसार शब्द पारमार्थिक तत्त्व है, शेष तत्त्व अपारमार्थिक हैं, इसीलिए ये सारे एकवादी हैं। 1. दशाश्रुतस्कन्ध, 6/3 नाहियवादी, नाहियपण्णे. नाहियदिट्टी 2. स्थानांगवृत्ति, पृ. 179, अक्रियावादिनो नास्तिका इत्यर्थः । 3. ठाणं, 8/22 4. नयोपदेश, श्लोक 126 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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