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________________ आगमों में प्राप्त जैनेतर दर्शन जैन आगम साहित्य एवं बौद्ध साहित्य में विभिन्न मतवादों का उल्लेख प्राप्त है।' उपनिषदों में भी यत्र-तत्र विभिन्न मतवादों का उल्लेख है। श्वेताश्वतरोपनिषद् में कालवाद, स्वभाववाद, नियतिवाद आदि की चर्चा है।' मैत्रायणी उपनिषद् में कालवाद की स्पष्ट मान्यता प्रचलित है।' भगवान महावीर के युग में मतवादों की बहुलता थी। दृष्टिवाद नाम के बारहवें अंग में 36 3 दृष्टियों का निरूपण और निग्रह किया जाता है, ऐसा धवला में उल्लेख है एषां दृष्टिशतानां त्रयाणां त्रिषष्ट्युत्तराणं प्ररूपणं निग्रहश्च दृष्टिवादे क्रियते।' दृष्टिवाद के सम्बन्ध में “समवायांग एवं नंदी में इस प्रकार का उल्लेख नहीं है फिर भी दृष्टिवाद नाम से ही प्रमाणित होता है कि उसमें समस्त दृष्टियों-दर्शनों का निरूपण है। दृष्टिवादद्रव्यानुयोग है।तत्त्वमीमांसा उसका मुख्य विषय है। इसलिए उसमें दृष्टियों का निरूपण होना स्वाभाविक है।'' भगवान महावीर के युग में 3 6 3 मतवादथे-यह समवायगत सूत्रकृतांग के विवरण" तथा सूत्रकृतांगनियुक्ति' से ज्ञात होता है किन्तु उन मतवादों तथा उनके आचार्यों के नाम वहां उल्लिखित नहीं है। जैन परम्परा के आदि साहित्य में ये भेद तत्कालीन मतवादों के रूप में संकलित कर दिए गए थे किंतु उत्तरवर्ती साहित्य में उनकी परम्परागत संख्या प्राप्त रही, उनका प्रत्यक्ष परिचय नहीं रहा। उत्तरवर्ती व्याख्याकारों ने इन मतवादों को गणित की प्रक्रिया 1. (क) सूयगडो, 1/1 अध्ययन, 12वां, सूयगडो 2/1 (ख) सामनफलसुत्त (दीघनिकाय) 2. श्वेताश्वतर उपनिषत्, 1/2, 6/। 3. मैत्रायणी उपनिषत्, 6/14,15 4. षट्खंडागम, प्रथम खंड, धवला पृ. 108 5. सूयगडो 1, भूमिका पृ. 22 6. समवाओ, पड़ण्णगसमवाओ, सूत्र 90 सूत्रकृतांग नियुक्ति,गा. 1190,असितिसय किरियाणं अक्किरियाणच होति चुलसीति अण्णाणिय सतट्ठीवेणइयाणं च बत्तीसा॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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