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जैन आगम में दर्शन
चाहता है, वह तू ही है।' जिसको तू मारना चाहता है, वह तेरे से भिन्न नहीं है। क्या तूं उसकी घात करता हुआ स्वयं की घात नहीं कर रहा है ? जहां द्वैत की या पर की अनुभूति होती है, वहां हनन, पीड़न का प्रसंग आता है, इसलिए आचारांग आत्मा के स्वरूपगत अद्वैत का उपदेश दे रहा है। संग्रहनय की अपेक्षा से अद्वैत भी वास्तविक है।
जैन आगमों में आत्म-शुद्धि के साथ ही साथ जीवनशुद्धि पर भी समान बल है। अहिंसा की अनुपालना आत्म-शुद्धि के लिए आवश्यक है वैसे ही समाज के लिए संतुलित संरचना के लिए भी आवश्यक है। जिस समाज में अनावश्यक रूप से एक-दूसरे का उत्पीड़न, ताड़न, परिताप एवं निग्रह होगा उस समाज में आतंक, तनाव, विग्रह की समस्याओं का साम्राज्य होगा। आचारांग इस यथार्थ से अवगत है। वह मनुष्य की पारस्परिक सौहार्दपूर्ण अवस्था को बनाए रखना चाहता है। आचारांग का निम्न वक्तव्य इस तथ्य का साक्षी है। “जिसे तू आज्ञा में रखना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू परिताप देने योग्य मानता है, वह तू ही है। जिसे तू दास बनाने योग्य मानता है वह तू ही है।'' आचारांग तात्कालिक समाज व्यवस्था में फैले दुराचार को समाप्त करना चाहता है। उस समय के समाज में दासप्रथा थी, जिसको आचारांग समीचीन नहीं मानता था। उस पर वह प्रहार कर रहा है। आचारांग का याह वक्तव्य उसकी व्यवहार-शुद्धि की अवधारणा की ओर भी इंगित कर रहा है।
आचार से पूर्व विचार/दृष्टि का यथार्थ होना आवश्यक है। विचार यदि सम्यक नहीं है तो सम्यक् आचार की परिकल्पना नहीं की जा सकती। बन्धन-मुक्ति के उपायों के क्रम में आचारशुद्धि से भी प्रथम स्थान विचार शुद्धि को प्राप्त है-सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग:।' दर्शनविशुद्धि आचारशुद्धि की पूर्व शर्त है। आचार समस्याओं का समाधायक तब ही बन सकता है जब वह विचारशुद्धि की भित्ति पर अवस्थित हो । भगवान् महावीर का आचार आत्म-प्रधानया अध्यात्म-प्रधान था इसलिए वर्तमान यग में भी उसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। वर्तमान जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान महावीर के आचार दर्शन में खोजा जा सकता है। नि:शस्त्रीकरण, इच्छा परिमाणव्रत, भोगपभोग की सीमा, अहिंसा, अनेकान्त आदि आचार के सूत्रों में युद्ध, हिंसा, आग्रह, आर्थिक विषमता आदि प्रश्नों के उत्तर निहित हैं।
__ सत्य त्रैकालिक होता है। उसकी उपयोगिता हर काल और हर समय में बनी रहती है। जैन आगमों में प्रतिपादित आचार शाश्वत का संगायक है अत: उसमें वर्तमान अपेक्षाओं की सम्पूर्ति करने की क्षमता भी है।
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1. आयारो, 5/101 2. वही 5/101 3. तत्त्वार्थसूत्र 1/1
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