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________________ 268 जैन आगम में दर्शन 1. श्रद्धावान्-अपने अनुष्ठानों के प्रतिपूर्ण आस्थावान । ऐसे व्यक्ति का सम्यक्त्व और चारित्र मेरु की भांति अडोल होता है। 2. सत्य-पुरुष-सत्यवादी । ऐसा व्यक्ति अपनी प्रतिज्ञा के पालन में निडर होता है, सत्याग्रही होता है। 3. मेधावी-श्रुतग्रहण की मेधा से सम्पन्न । 4. बहुश्रुत-जघन्यत: नौवें पूर्व की तीसरी वस्तु को तथा उत्कृष्टत: असम्पूर्ण दस पूर्वो को जानने वाला। 5. शक्तिमान् तपस्या, सत्त्व, सूत्र, एकत्व और बल इन पांच तुलाओं से जो अपने आपको तोल लेता है, उसे शक्तिमान् कहा जाता है। 6. अल्पाधिकरण-उपशान्त कलह की उदीरणा तथा नए कलहों का उद्भावन न करने वाला। 7. धृतिमान-अरति और रति में समभाव रखने वाला तथा अनुलोम और प्रतिलोम उपसर्गों को सहने में समर्थ। 8. वीर्य-सम्पन्न स्वीकृत साधना में सतत उत्साह रखने वाला।' वर्तमान में जैन परम्परा में एकल विहार प्रतिमा का प्रावधान नहीं है, प्राचीन काल में विशिष्ट अर्हता सम्पन्न व्यक्ति इसे स्वीकार करते थे। साधना के क्षेत्र में साधक हमेशा विशिष्ट प्रयोग करते रहे हैं। उन प्रयोगों से अपनी आत्मा को भावित कर विशिष्ट अर्हताओं का अर्जन भी उन्होंने किया है। जैन दर्शन अनेकान्तवादी है अत: अमुक प्रकार की ही साधना करनी होगी, ऐसा कोई नियम नहीं है, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, धृति, बल आदि के आधार पर बाह्य साधना के प्रकारों में विभेद होता रहा है किंतु आत्म-विकास का मुख्य हेतु आन्तरिक विशुद्धि ही है, यह सिद्धान्त सर्वत्र सर्वकाल में मान्य रहा, फलस्वरूप जैन आचार क्रियाकाण्ड की एकांगी कठोरता से बचा रहा। तब ही असोच्चा केवली,' पन्द्रह प्रकार के सिद्ध ' आदि की अवधारणा जैन परम्परा में बनी रही। विशुद्धि मुक्ति का द्वार जैन परम्परा में बंधन मुक्ति के लिए आत्म-विशोधि को ही मुख्य माना गया है। बाह्य परिवेश मुक्ति में बाधक नहीं है। कोई व्यक्ति किसी भी देश, परिवेश में मुक्त हो सकता है। आत्मिक शुद्धि के लिए कोई भी बाह्य परिस्थिति बाधक नहीं बनती। 1. स्थानांगवृत्ति, पत्र 416 2. अंगसुत्ताणि 2 (भगवई) 9/9-32 3. ठाणं, 1/214-228 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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