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________________ आचार का प्रमुख अंग अपरिग्रह (276-277); अहिंसा का सामाजिक आधार अपरिग्रह (277-278); जैन आचार की विशेषता (2 78 - 279); ज्ञान का फलित अहिंसा (279); आत्माद्वैत की स्वीकृति (2 79 - 280) सप्तम अध्याय : आगमों में प्राप्त जैनेतर दर्शन 281-308 दार्शनिक विचारधारा के संदर्भ में समवसरण की अवधारणा (282); क्रियावाद (28 2 - 2 84); अक्रियावाद (284-28 6); अज्ञानवाद (287); विनयवाद (287); दानामा और प्राणामा प्रव्रज्या (288); विनय का अर्थ (288 - 289); नव तत्त्व का आधार (290); भगवती में वर्णित समवसरण (291); सम्यक्दृष्टि एवं क्रियावाद (291-292); महावीर युग के विभिन्न मतवाद (292 - 29 3); पंचभूतवाद (293 - 295); तज्जीवतच्छरीरवाद (295 - 296); एकात्मवाद (296 - 297); अकारकवाद (297); आत्मषष्ठवाद (297-298); क्षणिकवाद (298 - 299); जैन मान्य आत्मअवधारणा (299 - 3 0 2); नियतिवाद ( 3 0 2 - 3 0 3); कर्मोपचय (3 0 3 - 3 0 4) सृष्टि की समस्या (304); अण्डकृत सृष्टि ( 3 0 4 - 3 0 5); देव एवं ब्रह्माकृत सृष्टि ( 3 0 5 - 306); ईश्वरकृत सृष्टि (306); प्रधानकृत सृष्टि (306 - 307); विभिन्न वादों का नयवाद में समाहार (308) ग्रंथसूची 309-329 000 (xii) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001983
Book TitleJain Agam me Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Agam
File Size21 MB
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