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( 2 2 1 ): ऐयापथिकी क्रिया के प्रकार ( 2 2 2 ); साम्परायिकी क्रिया के प्रकार ( 2 2 2 ); ऐपिथिकी क्रिया में होने वाला कर्मबंध (222-224) कर्मवेदन की सापेक्षता ( 2 2 4 - 2 2 5); वेदना एवं निर्जरा ( 2 2 5 - 2 2 6); वेदना एवं निर्जरा के उदाहरण ( 2 2 6); कर्मबन्ध एवं मोक्ष की कारणभूत क्रिया ( 2 2 7); कर्म का पौद्गलिकत्व (227- 2 2 8) कर्म एवं पुनर्जन्म ( 2 2 8 - 2 2 9); विभिन्न दर्शनों में पुनर्जन्म ( 2 2 9 - 2 3 0) पाश्चात्य विचारकों की दृष्टि में पुनर्जन्म (2 3 1) विज्ञान जगत में पुनर्जन्म की अवधारणा (2 3 1 - 232) पुनर्जन्म का आधार ( 2 3 2 ); उद्गम की जिज्ञासा (2 3 3); पूर्वजन्म की ज्ञप्ति के हेतु ( 2 3 3); पूर्वजन्म स्मृति के हेतु ( 2 3 3 - 2 3 4); जाति स्मृति की उभयरूपता (2 3 5); पुनर्जन्म के हेतु (235); पूर्वजन्म की स्मृति से आत्मा से सम्बंधित संदेह का निवारण (236); जाति-स्मृति सबको क्यों नहीं होती? (236); जाति-स्मृति के लाभ ( 2 3 6 - 2 3 7); मृत्यु के पश्चात् किसी भी योनि में जन्म ( 2 3 7); ज्ञान-दर्शन का भवान्तर गमन (2 3 7 - 2 3 8); चारित्र एवं तप के भवान्तर गमन का निषेध ( 2 3 9); पुनर्जन्म एवं आयुष्यकर्म (2 3 9 - 2 4 1), पुनर्जन्म : स्वत: चालित व्यवस्था (241) मुक्तजीव की गति ( 2 41); मुक्तजीव की गति के चार हेतु ( 2 4 2) षष्ठ अध्याय : आचार-मीमांसा
___243-280 आचार की परिभाषा (243); आचार का स्वरूप (2 4 3 - 244); आचरण की देशकालानुसारिता (244-245); ज्ञान एवं आचरण (2 45 - 247); आचार का आधार : आत्मज्ञान (247-249); रत्नत्रय: मोक्षमार्ग (2 49-51); त्रिरत्न एवं अष्टांग मार्ग ( 2 5 0 - 2 5 1 ); आचार के भेद (251); ज्ञानाचार (25 1 - 2 5 2); ज्ञान के अतिचार (252-253); दर्शनाचार (253-256); चारित्राचार (256-257); तप आचार (257-259); तप का उद्देश्य (259); वीर्याचार (259-260) धुत की साधना ( 2 6 0 - 261); कर्म विधूनन की प्रधानता (2 6 1 - 2 6 2 ); आहार संयम की साधना (26 2 - 2 6 3); ब्रह्मचर्य की साधना (2 6 3 - 264); आसन की साधना (265); प्रतिमा की साधना (2 6 6-2 6 7); एकलविहार प्रतिमा (2 6 726 8); विशुद्धि मुक्ति का द्वार ( 2 6 8 - 269); असोच्चा केवली (270); असोच्चा केवली की साधना (270) क्रियावाद (270 - 2 71); प्रवृत्ति एवं निवृत्ति (271-272); आचार में तटस्थता (272 - 274); हिंसा के प्रमुख कारण (274-275); शस्त्र विमर्श (275)
(xi)
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