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आत्ममीमांसा
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वायुकाय
__ हवा को वायुकाय कहा जाता है। जिन जीवों का शरीर ही वायु है, वे वायुकायिक जीव कहलाते हैं। उत्कलिका, मण्डलिका आदिवायुके अनेक प्रकार हैं। वायुचक्षुग्राह्य नहीं है उसका अनुभव स्पर्शनेन्द्रिय के द्वारा होता है। पंखे आदि के द्वारा हवा करने से वायुकाय के जीवों की विराधना होती है। संयमी मुनि पंखे आदि से हवा लेने की इच्छा नहीं करते, क्योंकि इससे हवा का समारम्भ होता है। यह सावध बहुल है। छहकाय के रक्षक मुनि अनिल का सेवन नहीं करते।' वायुकाय के शस्त्र
आचारांग नियुक्ति में वायुकाय के ये शस्त्र प्रतिपादित हैं - 1. वायु को उत्पन्न करने वाले व्यजन-पंखा, तालवृन्त-ताड़ का पंखा, छाज, चामर,
पत्र तथा वस्त्र का छोर आदि। 2. अभिधारणा-पसीने से लथपथ व्यक्ति का हवा के आगमन के मार्ग पर बैठना या
खड़े रहना। 3. चन्दन, खस आदि गंध द्रव्यों की सुगंध । 4. अग्नि-उसकी ज्वाला तथा गर्मी।
5. स्वकायशस्त्र-ठण्डा या गर्म प्रतिपक्ष वायु। वनस्पतिकाय
लता आदि वनस्पति ही जिनका शरीर होता है, उन जीवों को वनस्पतिकाय कहते हैं। वनस्पतिकायिक जीव सूक्ष्म और बादर के भेद से दो प्रकार के हैं। इन दोनों के पर्याप्त
और अपर्याप्त ये दो-दो भेद होते हैं। बादर पर्याप्त वनस्पतिकायिक जीवों के दो भेद होते हैंसाधारण शरीर और प्रत्येक शरीर। जिसके एक शरीर में अनन्त जीव होते हैं, उसे साधारण शरीर कहा जाता है। साधारण जीवों के आहार, उच्छ्वास आदि सब एक साथ होते हैं। ये सब जीव समान होते हैं। जिसके एक शरीर में एक-एक जीव होता है उसे प्रत्येकशरीरी कहा जाता है।' इन जीवों के प्रत्येक के स्वतंत्र शरीर होता है। सूक्ष्म वनस्पति के जीव एक शरीर 1. दसवेआलियं, 6/36, अनिलस्स समारंभ, बुद्धामन्नंतितारिसं। सावजबहुलं चेयं, नेयंताईहिंसेवियं ।। 2. आचारांगनियुक्ति, गा. 170, विअणे य तालवंटे सुप्पसियपत्त चेलकण्णेय।
अभिधारणा य बाहिं गंधग्गी वाउ सत्थाई।। 3. दशवैकालिकहारिभद्रीया वृत्ति पत्र-138, वनस्पति:-लतादिरूप: प्रतीत:, स एव काय:-शरीरं येषां ते
वनस्पतिकायाः। 4. उत्तरज्झयणाणि, 36/92 5. वही, 36/93
उत्तराध्ययनशान्त्याचार्य वृत्ति पत्र-691 7. वही, पत्र-691
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