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________________ २६८ Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature ही प्रशंसा की गई है। वादिराज का युग जैन साहित्य के वैभव का युग था । उनके समय में सिद्धान्तचक्रवर्ती नेमिचन्द्र, इन्द्रनन्दि, कनकनन्दि, अभयनन्दि तथा चन्द्रप्रभचरित काव्य के रचयिता वीरनन्दि, कर्नाटकदेशीय कवि स्न, अभिनवपम्प एवं नयसेन आदि हुए थे । गद्यचिन्तामणि और क्षत्रचूडामणि के रचयिता ओडयदेव वादीभसिंह और उनके गुरु पुष्पसेन, गंगराज राचमल्ल के गुरु विजयभट्टारक तथा मल्लिषेणप्रशस्ति के रचयिता महाकावि मल्लिषेण और रूपसिद्धि के कर्ता दयापाल मुनि इनके समकालीन थे । विषयवस्तु : काव्य के आरंभ में कवि भगवान् पार्श्वनाथ को नमस्कार करते है : श्री वधूनवसंभोगभव्यानंदैकहेतवे ।। नमः श्रीपार्श्वनाथ दानवेंद्रार्चितामये ॥ यजेंद्र द्वारा पूजनीय चरम कमल वाले, और मोक्ष लक्ष्मीरूपी वधू के नवीन संभोग से उत्पन्न हुये अपूर्व आनंद को भव्यों के लिये प्रदान करने वाले जो श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र हैं, उन्हें हमारा बार-बार नमस्कार है । बाद में कवि ने श्री पार्श्वनाथ के पूर्व भवों का क्रमशः आलंकारिक शैली में वर्णन किया है, और अंतिम सर्गों में भगवान् पार्श्वनाथ के जन्म-बोधि आदि कल्याणकों का भी विशद निरूपण किया है। इस काव्य में २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के जीवन का काव्यात्मक शैली में वर्णन किया गया है । काव्य १२ सर्गों में विभक्त है । प्रत्येक सर्ग का नाम वर्ण्यवस्तु के आधार पर दिया गया है। पहले सर्ग का नाम अरविन्दमहाराजसंग्रामविजय, दूसरे का नाम स्वयंप्रभागमन, तीसरे का नाम वज्रघोषस्वर्गगमन, चतुर्थ का नाम वज्रनाभचक्रवर्तिप्रादुर्भाव, पाँचवे सर्ग का नाम वज्रनाभचक्रवर्ती चक्रप्रादुर्भाव, छठे का वज्रनाभचक्रवर्तिप्रबोध, सातवें का वज्रनाभचक्रवर्तिदिग्विजय, आठवें का आनन्दराज्याभिनन्दन, नवम का दिग्देवीपरिचरण, दशम का कुमारचरित, ग्याहरवें का केवलज्ञानप्रादुर्भाव और बारहवें का भगवनिर्वाणगमन है ।। सर्ग के नाम के अनुसार आरंभ के सर्गों में भगवान् पार्श्वनाथ के पूर्वभव का विशद निरूपण किया गया है । अंतिम तीन सर्गों में भगवान् पार्श्वनाथ की बाल्यावस्था और 'कशोरावस्था, केवलज्ञान की प्राप्ति और निर्वाणगमन का आलेखन है । . कवि ने पार्श्वनाथ स्वामी के पूर्वभवों का विस्तार से परिचय काव्य के आरंभ में दिया है । सुरम्य देश के महाराजा, उनके मंत्री विश्वभूति का वैराग्य और पुत्र मरुभूति का मंत्री बननाआदि घटनाओं का आलेखन है । पार्श्वनाथ स्वामी अपने पूर्वभव में मरुभूति थे । उसके पश्चात् क्रमश: वज्रघोष हस्ति रश्मिवेश, वज्रनाभि, और वज्रबाहु के पुत्र आनंद के रूप में उनका जन्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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