SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "श्लिष्टकाव्य" साहित्य के प्रति जैन विद्वानों का योगदान २५७ धृतवंशदीप्तिः- स्पष्टम् श्रुतिप्रतिष्ठा- श्रुतौ वेदे प्रतिष्ठा यस्या इति पुरुषार्थसूति:- स्पष्टम् सन्मार्गविस्तारवती- स्पष्टम् सुजाति: शोभना जातिरुत्पत्तिर्यस्याम एक और उदाहरण इस प्रकार है : स्फुरहष्यश्रृङ्गविततान्यथान्वहं सवानान्तराप्यधिगतो महीपतिः । चतुरोऽपि पंचसुख भासुरश्रियः तनयानवाप हरिदत्रतेजसः ॥ राघवपाण्डवीयम् १.६६ इस श्लोक में हरिदस्रतेजसः में श्लेष है । महाभारत पक्ष में "दरिदस्रतेजसः तनयानवाय" । यहाँ हरिशब्द श्लिष्ट है । हरिश्च हरिश्च हरिश्च हरयः दस्रौच हरिदस्राः, ते तेजसः इव तेजांसि हरिदस्रतेजस हरिः = यमः, हरि:-वायुः, हरि:-इन्द्रः, दस्रौ-अश्विनीपुत्रौ । क्रमशः युधिष्ठिरः, भीमः अर्जुनः नकुलसहदेवौ इस प्रकार जैन विद्वानों में श्लिष्टकाव्य साहित्य की श्रीवृद्धि की है। पावटीप :१. जैन साहित्य परम्परानो संक्षिप्त इतिहास प्रकरण ४१ । २. अनेकार्थ साहित्य संग्रह । ३. जैन अनेकार्थ । ४. अनेकार्थ रत्नमंजूषा, प्रस्तावना पृ० ९० । ५. अनेकार्थ साहित्य संग्रह पृ० ६३-६४ । 000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy