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________________ २४० Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature की प्रतीक्षा में स्वयं वहाँ उपस्थित रहना अनुभाव है । मति, धृति, गर्व, क्षोभ तथा प्रहर्ष आदि व्यभिचारी भाव हैं । यद्यपि रङ्गमञ्च पर भीम का प्रवेश रोषपूर्ण मुद्रा में होता है तथापि उसका साहसिक कृत्य रूपक में मुख्यतः वीर रस का ही सञ्चार करता है । द्रौपदी के वन्यवेष को देखकर भीम के रोषपूर्ण कथन से रौद्र रस का भी सञ्चार होता है ।३६ व्यायोग में भीम के शरीर की कठोरता तथा उसके गुरुत्व के प्रसंगों में अद्भुत रस की योजना है । अकेले भीम द्वारा राक्षसराज तथा राक्षस समूह का सामना करते हुए बक को मार डालने का प्रसंग आश्चर्यजनक हैं । साहसिक के मुख से बक राक्षस के क्रूर कर्म तथा पौरजनों की करुणगाथा से भय का सञ्चार होता है ।२७ रुधिरशोणित स्मशानसदृश भूमि के दृश्य से बीभत्स रस का निदर्शन प्राप्त होता है ।२८ राक्षसराज के अत्याचारों से उत्पीडित पौरजनों की करुणगाथा व्यायोग में करुण रस की संसृष्टि करती है । वृद्धा माता तथा वधू सहित जीवन से निराश नवयुवक की उपस्थिति भी अत्यन्त कारुणिक है ।३९ इस प्रकार कवि ने सभी दीप्त रसों का सन्निवेश कर वीररस प्रधान व्यायोग की रचना की है । रूपक में भारती वृत्ति का प्राधान्य है । युद्धप्रसंग में सात्वती तथा आरभटी वृत्तियाँ विद्यमान हैं । प्रस्तावना में भारती वृत्ति के दर्शन होते हैं ।२ भाषा-शैली :- प्रस्तुत व्यायोग की भाषा सरल, सरस, प्रवाहयुक्त एवं भावप्रवण है । पाण्डित्य-प्रदर्शन मात्र के लिए इसे विकट-पदबन्धों की योजना से दुरूह नहीं बनाया गया है । यह भावनानुसार परिवर्तित भी हुई है । पात्र नाट्यनियमानुकूल भाषा का प्रयोग करते हैं । भीम, बक आदि पात्र संस्कृत का प्रयोग करते हैं । व्याघ्र, सूकर आदि निम्न पात्र तथा द्रौपदी प्राकृत में व्यवहार करते हैं । बकासुर का क्रूर कर्म तथा भीम का शौर्यवर्णन गौड़ी रीति में निबद्ध है । छन्द :- इस व्यायोग में २६ श्लोक हैं । इन श्लोकों में कवि ने नव छन्दों का प्रयोग किया है । इनमें स्रग्धरा छन्द३ का आठ बार, शार्दूलविक्रीडित का चार बार, आर्या छन्द५ का चार बार, अनुष्टुप्६ का तीन बार, मन्दाक्रान्ता का तीन बार तथा पृथ्वी", मालिनी ९, वसन्ततिलका और शिखरिणी१ का प्रयोग एक एक बार हुआ है, जो कवि के छन्द विषयक ज्ञान का परिचायक है । निर्भयभीमव्यायोग की समीक्षा :- निर्भयभीमव्यायोग में एक अङ्क है । और एक दिन की घटना वर्णित है । एक ही स्थान पर, एक ही प्रयोजन-सिद्धि-हेतु सम्पूर्ण घटनाक्रम घटित होता है । सन्धियाँ एवं अवस्थाएँ नियमों के अनुकूल हैं । अर्थप्रकृतियों में बीज, बिन्दु तथा कार्य के अतिरिक्त कथा को अग्रेसर करने के लिए ब्राह्मण नवयुवक, उसकी नवविवाहिता वधू तथा वृद्धा माता के प्रसंग का पताका रूप में निबन्धन हुआ है । इसकी कथावस्तु महाभारात पर आधारित होने के कारण प्रख्यात है, किन्तु कवि ने अपनी नाट्यप्रतिभा से उसमें यत्र तत्र परिवर्तन किये हैं जिससे रूपक की चारुता में वृद्धि हुई है । नाटककार ने महाभारत के विपरीत इस घटना के समय द्रौपदी को भीम के साथ उपस्थित कर भीम के गुणों को उत्कृष्ट रूप प्रदान किया है । जिस प्रिया के मनोविनोदार्थ वह वनभ्रमण के लिए जाता है उसी प्रिया के अनुनयFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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