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________________ निर्भयभीमव्यायोग का साहित्यिक अध्ययन २३९ भरतवाक्य :- भीम द्वारा रक्षित ब्राह्मण नवयुवक भरतवाक्य का पाठ करता है । इस भरतवाक्य में देशवासियों को भीम से प्रेरणा प्राप्त कर स्वतन्त्रताप्राप्ति के लिए प्रेरित भी किया गया पात्रालेखन : भीम :- भीम इस रूपक का नायक है । उसका शरीर अत्यन्त बलिष्ठ, कठिन एवं विशाल है ।२९ उसके वज्रकाय शरीर को काटने में राक्षस भी असमर्थ हैं । कौरवों द्वारा द्यूतक्रीडा में किये गये अपमान का बदला लेने के लिए वह उचित समय की प्रतीक्षा में हैं । पत्नी के वन्यवेष के कारण उसके हृदय में सदैव रोषाग्नि प्रज्वलित रहती है । युद्धरूपी यज्ञाग्नि में सम्पूर्ण शत्रुवर्ग की आहुति डालने की उसकी प्रबल इच्छा उसके औद्धत्य की परिचायक है । उसे अपने बल-सामर्थ्य पर पूर्ण विश्वास है । ब्राह्मण नवयुवक का प्राणदान देकर राक्षसराज की प्रतीक्षा में स्वयं वहाँ उपस्थित रहना उसके अप्रतिम साहसा का परिचायक है । बकासुर के साथ हुआ उसका रोषपूर्ण संवाद उसकी आत्मश्लाघा की भावना को व्यक्त करता है । राक्षसों द्वारा उठाकर पर्वत पर ले जाये जाने पर वह अपनी निर्भीकता तथा दृढ़ता का परिचय देता है । राक्षस के साथ हुए उसके द्वन्द्व-युद्ध में भी उसकी निर्भीकता व्यक्त होती है। दया और करुणा जैसी सात्त्विक भावनाएँ भी उसके हृदय में विद्यमान हैं । ब्राह्मण नवयुवक की करुणा अवस्था को देखते ही उसका मन द्रवित हो जाता है ।३१ आर्त-त्राण पाण्डवकुल की परम्परा है और अपनी महिमामयी कुल-परम्परा को वह किसी भी मूल्य पर बनाए रखना चाहता है ।२२ द्रौपदी का अनुनय-विनय, आग्रह तथा विषाद भी उसे अपने कर्तव्य पालन से विमुख नहीं होने देती । इस प्रकार यद्यपि भीम के चरित्र में नाटककार ने धैर्य, साहस, निर्भीकता, दृढ़ता आदि अनेक दुर्लभ मानवीय गुणों को समन्वित कर आदर्श रूप में प्रस्तुत किया है तथापि उनकी क्रोधज्वाला अपरिमेय साहस, दर्प, आत्मश्लाघा की प्रवृत्ति आदि गुण उसके धीरोद्धत स्वभाव की पुष्टि करते हैं । बक-राक्षस :- बक-राक्षस इस रूपक का द्वितीय प्रमुख पात्र है । उस पर विजय प्राप्त करना ही रूपक का मुख्य प्रयोजन है । वह अत्यंत विकराल आकृति से युक्त, अपार शक्तिसम्पन्न राक्षसराज है ।३३ बक का वैशिष्ट्य साहसिक पुरुष के कथन से परिलक्षित होता है ।३४ सम्पूर्ण नगर में उसका आतंक छाया हुआ है। वह क्रूरता का मूर्त रूप है । राक्षसी वृत्ति के प्रतिकूल वह मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता और प्रतिदिन एक ही जीव को खाने की अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ रहता है । मानव समूह को संत्रस्त करने वाला वह प्रबल राक्षस अनेक प्रकार से युद्ध करता हुआ अन्ततः भीमसेन द्वारा मारा जाता है । स्स :- इस रूपक में प्रमुख रस वीर है । संकटापन्न नवयुवक को बचाने की भीम की व्यग्रता से ही वीरतापूर्ण कार्य का चिन्तन आरम्भ हो जाता है । वह वीररस के स्थायीभाव 'उत्साह' का आश्रय है । बक राक्षक आलम्बन विभाव तथा पौरजनों की करुण गाथा और नवयुवक का करुण क्रन्दन उद्दीपन हैं । भीम द्वारा ब्राह्मण नवयुवक को निर्णय प्रदान करना और राक्षसराज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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