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आचार्य रामचन्द्र सूरि और उनका कर्तृत्व
प्रभुनाथ द्विवेदी
आचार्य रामचन्द्र सूरि गुजरात की सारस्वत विभूति आचार्य हेमचन्द्र के प्रमुख शिष्य थे । गुजरात के तत्कालीन शासक सिद्धराज जयसिंह के शासनकाल में ही आचार्य हेमचन्द्र ने रामचन्द्र सूरि को अपना योग्यतम पट्टशिष्य और उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था । प्रभाचन्द्रसूरि-विरचित 'प्रभावकचरित' (सं० १३३४-१२७७ ई०) में यह घटना इस प्रकार वर्णित है :
"राज्ञा श्रीसिद्धराजेन अन्यदानुयुयुजे प्रभुः । भवतां कोऽस्ति पट्टस्य योग्यः शिष्यो गुणाधिकः ॥ तमस्माकं दर्शयत चित्तोत्कर्षाय मामित । अपुत्रमनुकम्पार्ह पूर्वे त्वां मा स्म शोचयन् । आह श्रीहेमचन्द्रश्च न कोऽप्येतं हि चिन्तकः । आद्योऽप्यभूदिलापालः सत्पात्राम्भोधिचन्द्रमाः ॥ सज्ञानमहिमस्थैर्य मुनीनां किं न जायते । कल्पद्रुमसमे राज्ञि त्वयीशि कृतस्थितौ ॥ अस्त्यमुष्ययायाणो रामचन्द्राख्यः कृतिशेखरः । प्राप्तरेखः प्राप्तरूपः सङ्के विश्वकलानिधिः ॥ अन्यदाऽदर्शयंस्तेऽमुं क्षितिपस्य स्तुतिं च सः ।
अनुक्तामाद्यतिद्वद्भिहल्लेखाधायिनींव्यधात् ॥" उपर्युक्त श्लोकों में सिद्धराज जयसिंह और आचार्य हेमचन्द्र का संवाद निबद्ध है । कभी सिद्धराज जयसिंह ने आचार्य हेमचन्द्र से प्रश्न किया कि "भगवन् ! आपका उत्तराधिकारी मुख्य शिष्य कौन है ? मुझे भी उसका दर्शन कराने की कृपा करें । (मेरा कोई पुत्र न होने से) कहीं ऐसा न हो कि मेरी ही तरह आप भी शोक करें कि आपका कोई योग्य शिष्य नहीं है और उत्तराधिकारी न नियुक्त कर पायें । अतः अपने पट्टधर योग्य उत्तराधिकारी का निश्चित चयन कर लीजिए ।" इस पर आचार्य हेमचन्द्र ने राजा से अपना योग्य उत्तराधिकारी सुशिष्य रामचन्द्र को बतलाया और कहा कि इसे पहले ही आपको दिखला चूका हूँ। उस समय इसने आपकी अपूर्व हृदयहारी स्तुति की थी ।
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