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________________ संस्कृत महाकाव्यों में जैनियों का योगदान २१७ "कका कुकंकके कांककेकिकोकैककुः ककः । अकुकौकः ककाकाक्क ऋक्काकुकुककांककुः ॥" ६. महाकवि हरिश्चन्द्रः (वीं० श० उत्तरार्द्ध) भट्टारक हरिश्चन्द्र से न जाने आप भिन्न है या अभिन्न, किन्तु आपकी कृतियों से इतना तो सहज माना ही जा सकता है कि जैनधर्म के किसी सम्पन्न परिवार में आपका जन्म ग्यारहवीं शती के उत्तरार्द्ध में हुआ था और आप की सूचनाओं के अनुसार आद्रदेव आपके पिता, रथ्यादेवी माता एवं लक्ष्मण आपके अनुज थे। जैन सम्प्रदाय के १५ वे तीर्थकर भगवान् धर्मनाथ के चरित्र पर आधारित आपने एक महाकाव्य की रचना की थी, जिसका नाम धर्मशर्माभ्युदय है । उत्तरपुराण की कथा पर आधारित यह महाकाव्य २१ सर्गों में निबद्ध है तथा यह महाकाव्य के सभी लक्षणों से अनुप्राणित है । जीवनधरचम्पू आपकी दूसरी रचना है। ७. कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र : (१०८८) धर्म और विद्या के अनन्य प्रचारक, युगस्रष्टा के रूप में आविर्भूत कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्रसूरि का जन्म १०८८ ई० में. और मृत्यु ११७३ ई० में हुई थी । ये अहमदाबाद के धन्धुक नामक स्थान के वासी थे और इनके पिता का नाम चाच तथा माता का नाम पाहिनी था, जो भोड़वनियाँ जाति के थे । केवल ५ वर्ष की अल्पायु में ही इन्होंने देवचन्द्रमुनि से जैनधर्म की शिक्षा ली थी, पूर्वधर्म में इनका नाम चंगदेव था । संस्कृत के प्रायः किसी विद्या को अपनी रचनाओं से पूर्ण करने में पीछे नहीं रहे । व्याकरण में जहाँ इनका सिद्धहेमानुशासनम् जगत् प्रसिद्ध है. वही हैमनाममाला. निघण्टकोश. देशीनाममाला एवं अनेकार्थसंग्रहकोश साहित्य के है । दर्शनग्रन्थों में जहाँ प्रमाणमीमांसा और योगशास्त्र प्रमुख है, वहीं छन्दशास्त्र व अलंकारशास्त्रों में क्रमशः छन्दोनुशासनम् व काव्यानुशासनम् इनके उल्लेखनीय ग्रन्थ है । इन्होंने कुल २५ ग्रन्थों की रचना की है, जिसका पता हमे डा० आफेक्ट संगृहीत कैटलोगस कैटलोगोरम नामक सूची से चलता है । संस्कृतकाव्यग्रन्थों की जब भी चर्चा और समालोचना होती है तो आचार्य हेमचन्द्र की रचनाओं का उल्लेख सहसा हो ही जाता है । कुमारपालचरित और त्रिषष्टिशलाकापुरष नामक इनके दो संस्कृत काव्यग्रन्थ हैं । इनमें कुमारपालचरित नामक महाकाव्य का विषय चालुक्यवंशीयराजाओं का विस्तृत इतिहास-वर्णन है, जबकि त्रिषष्टिशलाकापुरुष में, जैसा कि नाम से भी विदित होता है जैनधर्म के ६३ तिड़सठ महापुरुषों किंवा शलाकापुरुषों का जीवनचरित वर्णित है । २० सर्गों वाला महाकाव्य कुमारपालचरित एक ऐसा उपजीव्य काव्य है, जो अनेक कवियों के लिये प्रेरणादायक सिद्ध हुआ । यद्यपि इस काव्य में मूलराज से लेकर चामुण्डराय, वल्लभराज, दुर्लभराज, भीम, कर्ण, सिद्धराज, जयसिंह, कुमारपाल सभी के जीवनचरित सुविस्तृत वर्णित है, फिर भी कुमारपाल को नायक बनाकर जितने भी काव्य या नाटक का प्रणयन किया गया उन सभी ग्रन्थों का स्रोत आ० हेमचन्द्र का ही महाकाव्य रहा है । इनमें जयसिंहसूरि का "कुमारपालचरित" हो या सोमप्रभाचार्य का कुमारपालप्रतिबोध, जिनमण्डल का कुमारपालप्रबन्ध हो या फिर यश:पाल का मोहराजपराजय, चारित्रसुन्दर का कुमारपालचरित सबके सब हेमचन्द्र के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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