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________________ Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature रीतिरिवाज अन्तर्गत संस्कार, अनुष्ठान, पर्व-व्रत, उत्सव, उद्योगधन्धे, व्यवसाय प्रथायें, परम्परायें और उनके आचार-विचार तथा लोक साहित्य के अन्तर्गत कथा, गीत एवं लोकोक्तियों का समावेश किया जाता है । २०८ लोक जीवन में अलौकिक प्राणियों एवं अदृश्य शक्तियों से सम्बन्ध अनेक प्रकार के विश्वास प्रचलित हैं । अनिष्ट निवारण एवं इष्ट सिद्धि के निमित्त देवी-देवताओं से सम्बद्ध लोक की यह विश्वासभावना वस्तुतः लोकधर्म का अङ्ग है और इसे धार्मिक अन्धविश्वास के रूप में स्वीकार किया जाता है । नायिका भगवती निशा से अपने अभीष्ट की सिद्धि के लिए प्रार्थना करती हुई कहती है : " तह बड्ढ भअवइ जिसे जह से कल्लं विअण होइ" ९ दैवगति अगम्य है । हानि-लाभ, जीवन, मरण, यश-अपयश विधि हाथ यह एक प्रचलित लौकिक धारणा है । गाहा सत्तसई की नायिका का भी दैव पर अटूट विश्वास है । "हिअअं हिअए गिहिअं विओइअं कित्थ देव्वेण १० कर्मफल दैवाधीन है । भाग्यफल को सर्वोपरि, सर्वशक्तिमान और अवश्यमेव घटित होने वाला फल कहा गया है । वह पूर्व आयोजित होता है । इसी भाग्यवत ( दैववाद) का समर्थन गा. स. की नायिका फल दैव के अधीन है तो किया क्या जाय ? कह कर कर रही है : 'देव्वा अत्तम्मि फले किं कीरइ एत्तिअं पुणोभणिमो" : मानव-जीवन में जो भी शुभ-अशुभ होता है वह पाप-पुण्य कर्मों का ही परिणाम होता है इसीलिए प्रच्छन्न में किए हुए पाप की शङ्का आदमी के हृदय से बाहर नहीं निकलती"रक्त में तं पि ण किट्ट अणुदिअहविइण्णगरू असंतावा पच्छण्णपावसङ्के व्व इसी प्रकार अङ्गनओं का स्नेह भाजन बनना तथा सुख-दुःख में साथ देने वाला व्यक्ति पुण्यों से ही प्राप्त होता है | १४ - १२" यह लोक विश्वास है कि जिसकी चिन्ता करते हुए मृत्यु होती है पुनर्जन्म में वही प्राप्त होता है मरणे या मतिः सा गतिः इसी विश्वास के कारण प्रिय के प्रति क्रोध से भरी नायिका इसलिये मरना नहीं चाहती कि इस समय मरने पर पुनर्जन्म में फिर वही मिलगा । १५ Jain Education International मानवजीवन का कोई भी क्षेत्र शकुनों के व्यापक प्रस्ताव से अछूता नहीं रहा है वह धार्मिक क्षेत्र हो अथवा सांस्कृतिक, आधिभौतिक हो या आधिदैविक, आध्यात्मिक हो या मनोवैज्ञानिक किसी न किसी रूप में शकुन सिद्धान्त इससे सम्बन्धित रहा है । गाहासत्तसई में शुभ शुभ शकुनों के अनेक उल्लेख हैं स्त्रिएं की काम नेत्र स्पन्दन शुभ माना जाता है : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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