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गाहासत्तसई को लोकमिता
"फुरिए वामच्छितुए जइ एहिइ सो णिओ ज्ज ता सुइरं'
संमीलिअ दाहिण तुइ अति एहं पलोइस्सं ।"१७ यात्रा के समय शकुनविचार बहुत पुराना है । अगारक (मंगल) वार और विष्टि दिवस यात्रा के लिए वर्जित माने जाते हैं :
"धरिणिधणत्थणपेलमण-सुहेल्लिपडिअस्स होन्तपहिअस्स ।
अवसडणङ्गारिअरवारविछिदिअहा सुहावेन्ति ॥८" यानामार्ग में कृपणसार मृग का दाँये से बांये जाना ९ तथा बौद्धभिक्खुओं का दर्शन अशुभ माना जाता है । यात्रारम्भ में कमल अथवा आम्रमंजरी से युक्त जलपूर्ण प्रस्थान-कलश की स्थापना शुभ मानी जाती है ।२९ प्रवासी प्रिय की मंगल कामना हेतु 'काम्बलि' शुभ मानी जाती है ।२२ इसी प्रकार पूर्णिमा तिथि के चन्द्र-दर्शन से सुख की प्राप्ति होती है-'जइ कोत्तिओ सि सुन्दर सअलति ही चंददंसणसुहागं२३ ग्रहबाधा ण इमा गहलविआ परिब्भमइ२४ तथा भूतप्रेतों में विश्वासभूआणं व वाइओवंसो२५ रूप घणसमअं पामरी सवइ२६ तथा शपथ-सवहसअरक्सिओटुं२७ आदि लोक विश्वासों से सत्तसई का सम्पूर्ण लोकवातावरण ओतप्रोत है।
सामाजिक संस्थाओं में कौटुम्बिक जीवन का सर्वाधिक चित्रण गाहासत्तसई में हुआ है । ग्रामीण भारतीय कुटुम्ब का वास्तविक स्वरूप संयुक्त परिवार का रहा है । जिसमें कौटुम्बिक व्यवस्था का संचालक गृहपति गुरुजन 'गामणि धूआइ गुरुअणसमक्खं२९ देवर तथा देवरानियाँ 'छेअहिं दिअरजाआहि'..३० सास बहू 'सासूणवब्भदंसणकण्ठागअजीविअं९ मातुलानी 'मामि सरसक्खराणों...२२ आदि सम्बन्धों के मार्मिक चित्रण अनेक गाथाओं में विद्यमान है । देवर-भाभी के प्रणय-प्रसंग का चित्रण ग्राम-गीतों की तरह ही गाथाओं में प्राप्य है। संयुक्त भारतीय परिवार में पति का अनुज होने के नाते देवर को धृष्ट और उदंड होने का सहज अधिकार प्राप्त है, जिसका उपभोग वह भाभी के साथ परिहास एवं प्रणय में करता है। कहीं वह नव-लता से प्रहार करके भाभी की देह को रोमांचित करता है ।३३ तो कभी भाभी देवरानियों को लेकर देवर से रोचक विनोद करती है ।३४ लोक साहित्य के प्रमुख पात्र सपत्नी (साँत) की अनेक भंगिमायें कई गाथाओं में सजीव रूप से अंकित हुई हैं, परस्पर ईर्षाभाव जिसे लोक में 'साँतिया डाह कहा जाता है। सत्तसई में विशेषरूप से वर्णित है । आयजित कनिष्का (सपत्नी) के यौवन को देखती है, तो ईर्षा से जल उठती है ।
'हल्लफलण्हाणपसाहिआणं इणवासरे सवत्तीणं ।
अज्जाएँ भज्जणाणाअरेण कहि व सोहग्गं ॥२६ सपनी द्वारा पति को सपत्नी के दुश्चरितों की सूचना देती हुई कहती है "सूप जल गया, चने न पूँज पाई, वह जवीन भी निकल गया, घर में सासू भी रिवसिया गई है, मानों उसने बहसे के आगे बंसरी बजाई"३७ प्रिय के प्रेम पर एकनिष्ठ अधिकार प्राप्त करना नारी-जीवन का लक्ष्य है । प्रेम में बँटवारा उसे कदापि सहन नहीं है । नारी के इस संवेदनशील पक्ष का जैसा
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