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________________ गाहासत्तसई की लोकधर्मिता मीरा शर्मा कालजयी साहित्य लोकतत्त्व से अनुप्राणित होता है । वस्तुतः साहित्यकार जब सामान्य धरातल पर खड़े होकर लोकजीवन को अपनी भावनाओं में रङ्क कर प्रस्तुत करता है वही साहित्य सर्वथा शाश्वत और युगसापेक्ष होता है । लोकजीवन की सारी समूची अभिव्यक्तियों जैसे हमारी संस्कृति, धार्मिक संस्कार, समाज की सनातन समस्यायें, जो अनादिकाल से चली आ रही हैं और लोक जीवन की पारस्परिक प्रथायें एवं विश्वास जो लोकजीवन के राजमार्ग हैं, 'लोकमानस, उसकी गहराईयाँ, प्रवृत्तियाँ, शक्तियाँ और उनके अनन्त आयाम ये सभी कालजयी साहित्य के प्राणतत्त्व हैं । लोकधर्मिता के इसी प्राणतत्त्व ने राजासातवाहन हाल कृत 'गाहासत्तसई को कालजयी साहित्य की गरिमा प्रदान कर भावी साहित्यकार की लेखनी को एक नयी दिशा दी हैं । लोकधर्म या लोकतत्त्व जीवनव्यापी है और जनसमूह का विशिष्ट अङ्ग हैं। डॉ० सत्येन्द्र ने स्पष्ट रूप में कहा है-लोक मनुष्य समाज का वह वर्ग है, जो आभिजात्य संस्कार, शास्त्रीय और पाण्डित्य के अहङ्कार से शून्य है और जो एक परम्परा के प्रवाह में जीवित है, ऐसे लोक की अभिव्यक्ति में जो तत्त्व मिलते हैं वे लोकतत्त्व कहलाते हैं । लोक का अर्थ जनसामान्य एवं उसके प्रचलित रीति-रिवाज एवं विश्वास तथा अन्ध-परम्पराओं आदि से लिया है। मुख्यतः लोक शब्द के दो अर्थ प्रचलित रहे हैं : एक तो 'विश्व' अथवा 'समाज' दूसरा 'जनसामान्य' अथवा संस्कृति के एक विशिष्ट भेद की ओर इङ्गित करने वाले एक आधुनिक विश्लेषण के रूप में इस शब्द का अर्थ 'ग्राम्य' अथवा 'जनपदीय' समझा जाता है । 'लोकतत्त्व' अंग्रेजी भाषा के 'फोक लोक'२ (Folk Lore) का समानार्थी है । जॉन थॉमस ने यह शब्द 'सभ्य जातियों में प्राप्त होने वाले असंस्कृत समुदाय की परम्परा प्रथित रीतिरिवाज और विश्वास के लिए प्रयुक्त किया है । 'न्यू स्टैन्डर्ड डिक्शनरी ओफ द इंगलिश लैग्वेज' के अनुसार 'साधारण जनता की प्रथाओं, विश्वासों और रीतिरिवाजों, अथवा उसके ज्ञान को 'फोक लोर' कहा जा सकता है । टी० शिवले तथा जे० एल० मिश आदि पाश्चात्य विद्वानों ने भी 'फोक लोर' के अन्तर्गत ऐसे सभी प्राचीन विश्वासों प्रथाओं, परम्पराओं, अन्धविश्वासों, उत्सव-रीतियों परम्परागत खेल या मनोरंजन, लोक-गीत, लोक नृत्य, प्रचलित कहावतों तथा कलाकौशल को सम्मिलित किया है । 'फोकलोर' की वैज्ञानिक एवं व्यापक परिभाषा श्रीमती शार्लट सोफिया वर्न ने अपनी पुस्तक The Book of Folk-Lore में दी है । डॉ० सत्येन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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