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________________ १४६ भगवान् महावीर को अभिमत ऐसा आगमों का पाठ (= महावीर की वाणी) भगवान महावीर के निर्वाण के १६० वर्ष के बाद यानि कि ई० स० पूर्व ३६७ में, पाटलिपुत्र में स्थूलभद्र की बैठक में तय हुआ अर्धमागधी भाषा में उपनिबद्ध पाठ । एक ही समय में ( ई० स० ३१३ में) मिली हुई दो बैठक मथुरा में वलभी में 1 आर्यस्कन्दिल के नेतृत्ववाली बैठक में निश्चित हुआ पाठ (संभवत: शौरसेनी में) Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature I ( माथुरी वाचना के आधार पर) वलभी में ई. स. ४५३ या ४६६ देवर्धिगणि क्षमाश्रमण का लिपिबद्ध किया हुआ पाठ नागार्जुन के नेतृत्ववाली बैठक में निश्चित हुआ पाठ (जिसके कुछ अंश उनके नाम पर पाठान्तर के रूप में निर्दिष्ट हैं ।) ( चूर्णि, मलधारी हेमचन्द्रसूरि शीलांकाचार्य की वृत्तियाँ) व्याख्या ग्रंथों की रचना का समय श्वेताम्बर जैनों को मान्य ऐसा जैन महाराष्ट्री में लिखा हुआ पाठ, जो आज ताडपत्रीय और हस्तलिखित प्रतियों में प्राप्त होता है । उपर्युक्त वंशवृक्ष के अनुसन्धान में कोई भी आधुनिक पाठसंपादक को अपनी पाठसमीक्षा के लक्ष्य निम्नानुसार बनाने चाहिएँ - Jain Education International १. देवर्धिगणि क्षमाश्रमण द्वारा संगृहीत पाठ, जो 'जैन महाराष्ट्री प्राकृत' में उपनिबद्ध था, प्रोफेसर के. आर. चन्द्राजी के अनुसार भाषाकीय दृष्टि से तुलना में अधिक अर्वाचीन कहा जा सकता है । उससे पूर्व नजर करें तो स्थूलिभद्र ने पाटलिपुत्र में 'व्यवस्थित' किया गया पाठ, जो प्राचीन अर्धमागधी में होगा, उसके स्वरूप की गवेषणा करके, प्रोफेसर के. आर. चन्द्राजी के मत से " अर्धमागधी भाषा में जैनागमों का पाठ पुनः स्थापित करना चाहिए ।" क्योंकि, पाठसमीक्षाशास्त्र प्राचीनतम पाठ की शोध का लक्ष्य लेकर प्रवर्तित किया जाता है, (और ऐसा करने में आगमों में अर्थ की दृष्टि से कुछ हानि नहीं होगी) । निदर्श के रूप में कहें तो, जैसा कि डॉ. के. आर. चन्द्राजी ने ध्यान आकृष्ट किया है, आधुनिक संपादकों में से एक शुब्रिंग ने आगमों के पाठ में मध्यवर्ती अल्पप्राण व्यंजनों का लोप और महाप्राणों का ह कार कर दिया है । (जो अर्वाचीन प्राकृत का लक्षण है ।) तथा दूसरे मुनि श्री जम्बूविजयजी ने प्रारंभिक और मध्यवर्ती न कार के स्थान में सर्वत्र ण कार कर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001982
Book TitleContribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages352
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English & Articles
File Size22 MB
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