SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 252 पातञ्जलयोग एवं जैनयोग का तुलनात्मक अध्ययन उक्त सिद्धियों के अतिरिक्त साधक को जन्म, औषधि, मन्त्र अथवा तप से भी अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। जन्म से प्राप्त सिद्धियाँ पूर्व जन्मों के साधनाजन्य पुण्यों के प्रभाव से देवादि देहान्तरों से वर्तमान में मनुष्य देह में जन्म से ही प्राप्त शक्तियों (योग्यता) को जन्मजा सिद्धि कहा जाता है। विज्ञानभिक्षु का मत है कि लौकिक कर्मों के परिणामस्वरूप देवादि अन्य मनुष्येतर देहों में जन्म मात्र से प्राप्त होने वाली अणिमादि सिद्धियाँ कहलाती औषधिजन्य सिद्धियाँ औषधियों के द्वारा भी चित्त में विलक्षण परिणाम उत्पन्न होते हैं, जिन्हें औषधिजन्य सिद्धियाँ कहा जाता है। भाष्यकार व्यास का अभिमत है ऐसी सिद्धियाँ असुरभवनों में ही होती हैं क्योंकि वहाँ विलक्षण परिणामों को उत्पन्न करने वाले रसायन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। परन्तु विज्ञानभिक्षु का कहना है कि इस लोक में भी औषधि के प्रयोग से स्वर्णादि का निर्माण किया जा सकता है इसलिए यह नहीं समझना चाहिये कि ऐसी सिद्धियाँ केवल असुरभवनों में ही सम्भव हैं अन्यत्र नहीं। मंत्र से उत्पन्न सिद्धियाँ । इसके अतिरिक्त विधिवत् मन्त्र अनुष्ठान के प्रभाव से चित्त में अणिमादि सिद्धियाँ तथा आकाशगमन आदि विलक्षण प्रकार की शक्तियाँ उदित होती हैं, जिन्हें 'मंत्रजा सिद्धियाँ' कहा जाता है। तप से उत्पन्न सिद्धियाँ तप के द्वारा भी शरीर, इन्द्रिय तथा चित्त की शुद्धि होती है। परिणामस्वरूप विलक्षण शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, जिन्हें तप से उत्पन्न सिद्धियाँ कहते हैं। भाष्यकार व्यास के अनुसार तप से संकल्पसिद्धि प्राप्त होती है, जिसके परिणामस्वरूप साधक स्वेच्छा से ही अणिमादि सिद्धियों को तत्काल प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है तथा वह जो कुछ भी सुनना, देखना, अथवा चिन्तन करना चाहता है, उसे करने की सामर्थ्य उसे अधिगत हो जाती है। समाधिजन्य सिद्धियाँ पूर्व वर्णित धारणा, ध्यान और समाधि रूप संयम से प्राप्त होने वाली सिद्धियाँ समाधिजन्य कहलाती हैं। इन पांचों प्रकार की सिद्धियों में समाधिजन्य सिद्धियाँ ही श्रेष्ठ हैं क्योंकि उनके द्वारा ही साधक को चरमलक्ष्य कैवल्य की प्राप्ति होती है। अन्य प्रकार की सिद्धियों का कारण पूर्वजन्म का अभ्यास ही होता है। जन्म, औषधि आदि तो केवल निमित्तमात्र होते हैं। १. जन्मौषधिमन्त्रतपः समाधिजाः सिद्धयः । - पातञ्जलयोगसूत्र, ४/१ २. देहान्तरिता जन्मना सिद्धिः।- व्यासभाष्य, पृ० ४६६ ३. ऐहिकेन कर्मणा देवादिदेहान्तरे जन्ममात्रेण भवन्ती अणिमादिसिद्धिर्जन्मजेत्यर्थः । - योगवार्तिक, पृ० ३६७ औषधिभिरसुरभवनेषु रसायनेनेत्येवमादिः। - व्यासभाष्य, पृ० ४६६ अत्राप्यौषधिभिः सुवर्णादिसिद्धीनां भावात्। - योगवार्तिक, पृ० ३६७ मन्त्रैराकाशगमनाऽणिमादिलाभः। - व्यासभाष्य, पृ० ४६७ तपसा संकल्पसिद्धिः। - वही, पृ० ४६७ यदेव कामयतेऽणिमादि तदेकपदेऽस्य भवति। यत्र कामयते श्रोतुं वा मन्तुं वा तत्र तदेव श्रृणोति मनुते वेति। - तत्त्ववैशारदी, पृ० ३६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001981
Book TitlePatanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAruna Anand
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2002
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy