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पातञ्जलयोग एवं जैनयोग का तुलनात्मक अध्ययन
शब्द, अर्थ और ज्ञान की पृथकता में संयम करने से समस्त पशु, पक्षी आदि प्राणियों की भाषाओं का ज्ञान। संस्कारों पर संयम करने से समस्त पूर्वजन्मों का ज्ञान। प्रत्यय-विषयक (चित्त विषयक) संयम से परचित्त का ज्ञान ।' शरीर और उसके रूपादि का संयम करने से अन्तर्धान होने की योग्यता। सोपक्रम और निरुपक्रम – इन दो प्रकार के कर्मों में संयम करने से मृत्यु का ज्ञान ।। मैत्री आदि भावनाओं पर संयम करने से बल की प्राप्ति । हस्त्यादि के बलविषयक संयम के द्वारा बल की प्राप्ति । मन की ज्योतिष्मती प्रवृत्ति में संयम करने से (प्रवृत्त्यालोक के न्यास से) सूक्ष्म एवं व्यवहित
तथा विप्रकृष्ट पदार्थों का ज्ञान ।। १०. सूर्य में संयम करने से समस्त भुवनों का ज्ञान । ११. चन्द्रमा में संयम करने से तारा समूह का ज्ञान ।१०
ध्रुव में संयम करने से उनकी गति का ज्ञान ।११ १३. नाभिचक्र में संयम द्वारा शरीर-संरचना का ज्ञान ।१२ १४. कण्ठकूप में संयम द्वारा भूख-प्यास पर नियन्त्रण।३ १५. कूर्मनाड़ी में संयम करने से चित्त और शरीर में स्थैर्य की प्राप्ति ।१४ १६... ब्रह्मरन्ध्र की प्रकाशयुक्त मूर्धा-ज्योति में संयम करने से सिद्धपुरुषों का दर्शन १५
हृदय में संयम करने से समस्त वृत्तियों सहित चित्त का साक्षात्कार ।१६
स्वार्थविषयक संयम से पुरुष का साक्षात्कार । १६. उक्त संयम के अभ्यास से पुरुष दर्शन से पूर्व प्रातिभ, श्रावण, वेदना, आदर्श, आस्वाद् एवं
वार्ता आदि सिद्धियों की प्राप्ति।१८
शब्दार्थप्रत्ययानामितरेतराध्यासात् संकरस्तत्प्रविभागसंयमात् सर्वभूतरुतज्ञानम्। - पातञ्जलयोगसूत्र, ३/१७ संस्कारसाक्षात्करणात्पूर्वजातिज्ञानम्। - वही. ३/१८ प्रत्ययस्य परचित्तज्ञानम्। - वही, ३/१६ कायरूपसंयमात्तग्राह्यशक्तिस्तम्भे चक्षुष्प्रकाशासंप्रकाशासंप्रयोगेऽन्तर्धानम्।- वही, ३/२१ सोपक्रमं निरुपक्रमं च कर्म तत्संयमादपरान्तज्ञानमरिष्टेभ्यो वा। - वही, ३/२२
मैत्र्यादिषु बलानि। - वही, ३/२३ ७. बलेषु हस्तिबलादीनि। - वही, ३/२४
प्रवृत्त्यालोकन्यासात्सूक्ष्मव्यवहितविप्रकृष्टाज्ञानम्। - वही, ३/२५ ६ भुवनज्ञानं सूयेसंयमात्।- वही ३/२६ १०. चन्द्रे ताराव्यूहज्ञानम्।- वही, ३/२७ ११. धुवे तद्गतिज्ञानम्।- वही,३/२८ १२. नाभिचक्रे कायव्यूहज्ञानम्। - वही, ३/२६ १३. कण्ठकूपे क्षुत्पिपासानिवृत्तिः। - वही, ३/३० १४. कूर्मनाड्यां स्थैर्यम्। - वही, ३/३१ १५. मूर्धज्योतिषि सिद्धदर्शनम्। - वही, ३/३२ १६. हृदये चित्तसंवित्। - वही ३/३४ १७. सत्वपुरुषयोरत्यन्तासंकीर्णयोः प्रत्ययाविशेषो भोगः परार्थत्वात् स्वार्थसंयमात्पुरुषज्ञानम्। - वही, ३/३५ १८. ततः प्रातिभश्रावणवेदनादर्शास्वादवार्ता जायन्ते।- वही, ३/३६
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