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________________ सिद्धि-विमर्श २. ३. ४. ५. १. २. ३. ४. (३) आसन से प्राप्त सिद्धि आसन के सिद्ध होने पर शीतोष्णादि द्वन्द्वों को सहने की योग्यता प्राप्त होती है । " ५. ६. ७. भाव उत्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त आभ्यन्तरशौच से सत्त्व की शुद्धि, प्रसन्नता, एकाग्रता, इन्द्रियों पर विजय तथा आत्म-साक्षात्कार की योग्यता प्राप्त होती है। संतोष से परम सुख की प्राप्ति होती है। तप से अशुद्धि का क्षय होने पर शरीर और इन्द्रियों की सिद्धि होती है। शरीर सिद्धि में अणिमा, गरिमा, लघिमा, महिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, वशित्व, ईशित्व आदि सिद्धियाँ प्राप्त होती है। इन्द्रिय-सिद्धि में दिव्यदर्शन, दिव्यश्रवण तथा दूरश्रवण की अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है। स्वाध्याय से इष्ट देवता का साक्षात्कार होता है । ५ ईश्वर प्रणिधान से समाधि-लाभ होता है।' (४) प्राणायाम से प्राप्त सिद्धि प्राणायाम से विवेकज्ञान का आवरण क्षीण हो जाता है तथा चित्त में विविध धारणाओं की योग्यता आती है। (५) प्रत्याहार से प्राप्त सिद्धि प्रत्याहार से इन्द्रियों पर पूर्ण विजय प्राप्त होती है।" (६-८) धारणा, ध्यान और समाधि रूप संयम से प्राप्त सिद्धियाँ धारणा, ध्यान और समाधि तीनों को संयम कहा गया है।" संयम की स्थिरता से प्रज्ञा की दीप्ति अर्थात् विवेकख्याति का उदय होता है। इसके अतिरिक्त पातञ्जलयोगसूत्र में संयम से प्राप्त होने वाली अनेक अन्य सिद्धियों का भी उल्लेख हुआ है यथा 249 १. विषयों के धर्म, लक्षण एवं अवस्था रूप परिणामत्रय३ में संयम करने से योगी को भूत, भविष्य के साक्षात्कारात्मक ज्ञान की प्राप्ति।" शौचात्स्यांगजुगुप्सा परैरसंसर्गः पातञ्जलयोगसूत्र २/४० सत्त्वशुद्धिसौमनस्यैकाचेन्द्रियजयात्मदर्शनयोग्यत्वानि च । यही २/४१ 1 । । सन्तोषादनुत्तमः सुखलाभ वही २/४२ कार्यन्द्रिगसिद्धिरशुद्धिक्षयात्तपसः यही २/४३ स्वाध्यायादिष्टदेवतासम्प्रयोगः । दही. २/४४ समाधिसिद्धिरीश्वरप्रणिधानात्। - वही. २/४५ ततो इन्द्राननिघातः । वही २/४८ - ८. ६. १०. ततः क्षीयते प्रकाशावरणम् । वही, २/५२ धारणासु च योग्यता मनसः । - वही २ / ५३ ततः परमावश्यतेन्द्रियाणाम् । त्रयमेकत्र संयमः । वही, ३/४ १२. तज्जयात्प्रज्ञालोकः । वही, ३/५ वही, २ / ५५ ११. - १३. एतेन भूतेन्द्रियेषु धर्मलक्षणावस्थापरिणामाः व्याख्याताः । - वही, ३/१३ १४. परिणामत्रयसंयमादतीतानागतज्ञानम् - वही, ३/१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001981
Book TitlePatanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAruna Anand
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2002
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size25 MB
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