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________________ पातञ्जल एवं जैन-योग-साधना पद्धति तथा सम्बन्धित साहित्य परिदृश्यमान संसार में अनादिकाल से परिभ्रमण कर रहे जीवों के सर्वविध संतापों की निवृत्ति कर शाश्वत व चिरन्तन आनन्द की प्राप्ति कराने वाले साधनों में 'योग' प्रमुख है। आत्म-विकास हेतु आध्यात्मिक साधना के रूप में प्रागैतिहासिक काल में भी 'योग' का प्रचलन था । सिन्धु घाटी के अवशेषों में प्राप्त ध्यानस्थ योगी का चित्र उक्त तथ्य को पुष्ट करता है। प्राचीन ऋषियों ने चिरन्तन सत्यों का साक्षात्कार कर योग-साधना मार्ग को एक शास्त्र के रूप में प्रतिष्ठित किया जो 'योगदर्शन' के रूप में विख्यात हुआ । दार्शनिक दृष्टि से विचार करने पर ज्ञात होता है कि भारतीय संस्कृति में तीन धाराएँ प्रमुख रही हैंवैदिक, जैन और बौद्ध । अवान्तररूप से अन्य भी अनेक परम्पराएँ थीं। उन सबकी चिन्तन-पद्धति एवं मौलिक विचारधारा में भिन्नता होने से उनकी साधना-पद्धति भी पृथक्-पृथक् थी । वस्तुतः योग एक विशिष्ट साधना पद्धति है, जिसका सम्बन्ध आत्मदर्शन से है। इसलिए वैदिकयोग, बौद्धयोग और जैनयोग आदि नामों से आन्तरिक उन-उन धर्मों / सम्प्रदायों की विशिष्ट साधना-पद्धति को प्रकट किया जाता है। इन सभी योग-साधना पद्धतियों का उद्देश्य शुद्ध आत्मस्वरूप की प्राप्ति कराना है। इस दृष्टि से सभी योग-साधनाओं में परस्पर समानता/ एकता है। इन सबमें प्रत्येक साधना-मार्ग का पृथक्पृथक् वैशिष्ट्य है। योग-साधना के मार्ग अनन्त हैं। भक्तियोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग, राजयोग, हठयोग, ध्यानयोग, जपयोग, मन्त्रयोग, तपयोग, लययोग आदि योग की अनेक शाखाएँ हैं। वस्तुतः ये सभी शाखाएँ एक दूसरे की पूरक हैं और प्रत्येक की स्थिति-भेद के कारण ही इन साधना मार्गों में अन्तर दिखाई पड़ता है। पातञ्जलयोग-पद्धति पातञ्जलयोगसूत्र में चित्तवृत्तियों के निरोध को योग कहा गया है। अन्तःकरण की वृत्तियाँ योगक्रिया द्वारा क्रमशः शान्त होते-होते जब पूर्णतः शान्त हो जाती हैं उस अवस्था का नाम योगयुक्त अवस्था है। उसी अवस्था में द्रष्टा अपने यथार्थ स्वरूप में प्रकट होता है। साधकों में दृश्यमान विभेद के कारण योगसूत्र में चित्तवृत्तिनिरोध के उद्देश्य से तीन प्रकार के साधनों का निर्देश हुआ है। ये तीन साधन हैं १. अभ्यास एवं वैराग्य, २. क्रियायोग' और ३. अष्टांगयोग। इनमें से "अभ्यास एवं वैराग्य उत्तम अधिकारियों के लिए, "क्रियायोग" मध्यम अधिकारियों के लिए तथा "अष्टांगयोग" अधम अधिकारियों के - १. प्रथम अध्याय १. २. 3. ४. Sir J. Marashall, Mohan Jodaro and the Indus Civilization, ( Vol. 1), p.53 पातञ्जलयोगसूत्र. १/१२ वही, २/१ वही, २ / ३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001981
Book TitlePatanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAruna Anand
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2002
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size25 MB
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