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________________ योग और आधार 159 अत्यधिक हिंसा होती है, इसलिए श्रावकों के लिए उनका त्याग करना आवश्यक है। ये कर्मादान संख्या में १५ हैं - १. इंगालकम्म (अंगारकर्म) अग्नि को प्रज्वलित कर कोयला व लोहे आदि के उपकरण बनाना। वणकम्म (वनकम) जंगल के वृक्ष व उनकी पत्तियों को बेचकर आजीविका चलाना। ३. साडीकम्म (शकटकम) शकट अर्थात् बैलगाड़ी, रथ, तांगा आदि बनाना, बेचना अथवा चलाकर जीविका चलाना। ४. भाडीकम्म (भाटी या भाटककर्म) गाड़ी आदि के द्वारा बोझा ढोकर भाड़े के आश्रय से जीविका चलाना अथवा बैल, अश्व आदि पशुओं को भाड़े पर देकर जीविकोपार्जन करना। ५. फोडीकम्म (स्फोटककर्म) सुरंग बनाना, खान खोदना और पत्थर तोड़ना, हलादि के द्वारा भूमि जोतना। ६. दंतवाणिज्ज (दन्तवाणिज्य) हाथी के दांत या अन्य पशु के बहमूल्य दांतों, हड्डियों एवं चमड़े आदि का व्यापार करना। लक्याणिज्ज (लाक्षवाणिज्य) वृक्षों से निकाली गई लाख द्वारा व्यापार करना। ८. रसवाणिज्ज (रसवाणिज्य) विभिन्न प्रकार के मद्य-मदिरा आदि रसों को खरीद बेचकर व्यापार करना। ६. विसवाणिज्ज (विषवाणिज्य) विषैली वस्तुओं का क्रय-विक्रय कर व्यापार करना। १०. केसवाणिज्ज (केशवाणिज्य) बालों या बाल वाले प्राणियों का व्यापार करना। ११. जन्तपीलणकम्म (यन्त्रपीड़नकर्म) कोल्हू, ईख के यन्त्र, चक्र आदि द्वारा तेल व ईख का रस निकालना। १२. निल्लंछणकम्म (निर्लाञ्छणकर्म) बैल, बकरे आदि पशुओं को नंपुसक बनाना, उनको नियन्त्रण में रखने के लिए नासिका में रस्सी डालना, कान आदि अवयवों में छेद करना इत्यादि। १३. दवग्गिदावणया या दवदाणवणिज्जा जंगल अथवा खेतों में आग लगाना। (दावाग्निदापनता या दवदानव्यापार) १४. सरदहतलायसोसं झील, सरोवर, तालाब आदि जलाशयों के पानी को (सरद्रह-तडागशोषण) निकालकर उन्हें सुखाना। १. अमी भोजनतस्त्याज्याः, कर्मतः खरकर्म तु।। तस्मिन पंचदशमलान कर्मादानानि संत्यजेत् ।। - योगशास्त्र,३/६८ २. (क) इंगाली-वण-साडी-भाडी-फोडीसु वज्जए कम्म । वाणिज्जं चेव दंत-लक्ख-रस-केस-विसविसयं ।। एवं खु जंतपीलणकम्म निल्लंघणं च दवदाणं । सर-दह-तलायसोसं असईपोसं च वज्जिज्जा।। - श्रावकप्रज्ञप्ति, २८७.२८८ (ख) अंगार-वन-शकट-भाटक-स्फोटजीविका। दना-लाक्षा-रस-केश-विषवाणिज्यकानि च ।। यंत्रपीडा-निलाछनमसतीपोषणं तथा। दवदानं सरः शोष इति पञ्चदश त्यजेत्।। - योगशास्त्र, ३/६६, १०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001981
Book TitlePatanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAruna Anand
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2002
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size25 MB
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