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________________ 84 पातञ्जलयोग एवं जैनयोग का तुलनात्मक अध्ययन नहीं किया। उपा० यशोविजय ने योगविंशिका एवं षोडशक की वृत्ति में कायोत्सर्ग, पर्यंकबन्ध एवं पद्मासन आदि शास्त्रप्रसिद्ध आसनों को 'स्थान' शब्द से अभिप्रेत माना है।' २. ऊर्ण ऊर्ण, वर्ण या शब्द पर्यायवाची हैं। आ० हरिभद्र ने 'ऊर्ण' शब्द का प्रयोग किया है और उपा० यशोविजय ने 'वर्ण' शब्द प्रयुक्त किया है। प्रत्येक क्रिया आदि के समय शास्त्रविहित जो सूत्र पढ़े जाते हैं, उन्हें ऊर्ण, अर्थात् वर्ण या शब्द कहा जाता है। ३. अर्थ ___ अर्थ का अभिप्राय सूत्रार्थ के ज्ञान से है। आत्मतत्त्व के गूढ़ रहस्यों को समझने के लिए शास्त्रविहित सूत्रों के अर्थ को जानना आवश्यक है। सूत्र के अर्थ (शब्द के अभिप्राय) को जाने बिना सूत्रोच्चारण का कोई महत्व नहीं होता। इसलिए आ० हरिभद्रसरि ने 'अर्थ' को भी महत्वपूर्ण योग-साधन मानकर 'योग' की संज्ञा दी है। ४. आलम्बन जब साधक आसन, ऊर्ण और अर्थ के अभ्यास में सिद्धहस्त हो जाता है तब वह ध्यान का अधिकारी, होता है। प्रारम्भिक अवस्था में साधक को ध्यान के लिए किसी प्रतीक की आवश्यकता होती है। अतः वह किसी तीर्थंकर की मूर्ति अर्थात् बाह्य प्रतिमा आदि पर पूर्ण आस्था के साथ चित्त को एकाग्र करता है। बाह्य प्रतिमा आदि का ध्यान करना आलम्बन कहलाता है। आलम्बन दो प्रकार का होता है - रूपी ओर अरूपी। परम अर्थात् मुक्त आत्मा ही अरूपी आलम्बन है। उस अरूपी आलम्बन के गुणों की भावना रूप जो ध्यान है, वह सूक्ष्म (अतीन्द्रिय विषयक) होने से अनालम्बनयोग कहलाता है। उपा० यशोविजय ने इसे निरालम्बन नाम दिया है। ५. अनालम्बन जब साधक तीर्थंकर की प्रतिमा आदि बाह्य प्रतीक से ध्यान में अभ्यस्त हो जाता है, तब वह तीर्थंकर के आन्तरिक गुणों पर चित्त को एकाग्र करने का अभ्यास करता है। मन की यह एकाग्रता अनालम्बन कहलाती है, क्योंकि ध्येय वस्तु किसी भी इन्द्रिय के प्रत्यक्षगम्य नहीं है। उपा० यशोविजय के शब्दों में रूपी द्रव्य के आलम्बन से रहित जो शुद्ध चैतन्य मात्र की समाधि है, वह अनालम्बन है। ॐ १. स्थानं आसनविशेषरूपं कायोत्सर्गपर्यकबंधपद्मासनादि सकलशास्त्रप्रसिद्धम्। - योगविंशिका, गा० २ पर यशोविजय वृत्ति २. ऊर्णः शब्दः स च क्रियादावुच्चार्यमाणसूत्रवर्णलक्षणः। - वही अर्थः शब्दाभिधेयव्यवसायः। - वही आलम्बनं बाह्यप्रतिमादिविषयध्यानम्।- वही। (क) आलंबण पि एयं, रूवमरूपी य इत्थ परमु त्ति । तग्गुणपरिणइरूवो, सुहुमोऽणालंबणो नाम || - योगविंशिका, १६ (ख) षोडशक. १४/१ ज्ञानसार, २७/६ (क) सूक्ष्मोऽतीन्द्रियविषयत्वादनालम्बनो नाम योगः। - योगविंशिका, गा०२ पर यशो० वृ० (ख) षोडशक, १४/१ (1) The word anālambana does not mean deviod of any alambana (object) but only devoid ofmeans 'abstract' or subtle (Sükşma). - Studies in Jain Philosophy, p. 294. ८. 'रहितः इति रूपिद्रव्यालम्बनरहितोनिर्विकल्पचिन्मात्रसमाधिरूप इत्येवं.... | - योगबिंशिका, गा०२ पर रशोविजय वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001981
Book TitlePatanjalyoga evam Jainyoga ka Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAruna Anand
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2002
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size25 MB
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