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विश्व-दर्शन दिलोकी
द्रव्याधिकार १२ १२३
लोक सूत्र १. लोक सूत्र २८६. आदिणिहणेण हीणो, पगदिसरूवेण एस संजादो।
जीवाजीवसमिद्धो, सव्वण्हावलोइओ लोओ। ति०प० । १.१३३
तु० - भगवती सूत्र । २.१.९१ आदिनिधनेन होनः, प्रकृतिस्वरूपेण एष संजातः । जीवाजीवसमृद्धः, सर्वज्ञावलोकितः लोकः ।। सर्वज्ञ भगवान से अवलोकित यह लोक अनाद्यनन्त, स्वतः सिद्ध और जीव व अजीव द्रव्यों से ब्याप्त है।
(यह तीन भागों में विभाजित है-अघो, मध्य व ऊर्व। अपोलोक में नारकीयों का, मध्य में मनुष्य व तिर्यचों का तथा ऊर्ध्वलोक में देवों का वास
अवलोक
लोकाकाश
मध्यलोक
अलोकाकाश
अधोलोक
२८७. धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गलजंतवो।
एस लोगो त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ॥ उत्तरा०।२८.७
तु० = नि० सा०।९ धर्मः अधर्मः आकाशः, काल: पुद्गलाः जन्तवः। एष लोक इति प्रज्ञप्तो, जिनवरशिभिः॥ धर्म, अधर्म आकाश, काल, अनन्त पुद्गल और अनन्त जीव, ये छह प्रकार के स्वतः सिद्ध द्रव्य हैं। उत्तम दृष्टि सम्पन्न जिनेन्द्र भगवान ने इनके समुदाय को ही लोक कहा है। २८८. जीवा पुग्गलकाया, आयासं अस्थिकाइया सेसा । अमया अत्थित्तमया, कारणभूदा हि लोगस्स ।।
५० का० । २२ जीवाः पुद्गलकायाः, आकाशमस्तिकायौ शेषौ ।
अमया अस्तित्वमयाः, कारणभूता हि लोकस्य । इन छह द्रव्यों में से जीव, पुदगल, आकाश, धर्म व अधर्म इन पांच को सिद्धान्त में 'अस्तिकाय' संज्ञा प्रदान की गयी है। काल द्रव्य
चौदह राजु उत्तंग नम लोक पुरुष संठान । तामैं जीव अनादित भरमत है बिन ज्ञान।
१. दे० गा० ११०
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