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________________ Jain Education International : १८ : आम्नाय अधिकार देश कालानुसार भाषा व पद्धति के भेद अथवा छोटे-मोटे व्यावहारिक भेद को लेकर युग-युग में सर्वदा अवतीर्ण होने वाले सभी तीर्थंकर एक ही सिद्धान्त का आदेश देते हैं, इसलिए जैनाम्नाय अनादि-निधन है । जैन आम्नाय में श्वेताम्बर व दिगम्बर का भेद कब व कैसे उत्पन्न हुआ, यह विवादास्पद है। यहाँ केवल इतना बता देना इष्ट है कि दिगम्बर मत नग्नता के बिना मुक्ति नहीं मानता, और इसी कारण स्त्री-मुक्ति उसे स्वीकार नहीं, जब कि श्वेताम्बर मत स्त्री पुरुष आदि सबकी मुक्ति स्वीकार करता है और किसी भी लिंग से, यहाँ तक कि गृहस्थ लिंग से भी । वस्त्र, पात्र आदि उपकरण धारण करने मात्र से साघु परिग्रही नहीं हो जाता, क्योंकि वह उन्हें संयम के निर्वाहार्थं ग्रहण करता है, मूर्च्छा या आसक्ति के वश होकर नहीं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001976
Book TitleJain Dharma Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarva Seva Sangh Prakashan Rajghat Varanasi
PublisherSarva Seva Sangh Prakashan
Publication Year
Total Pages112
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size7 MB
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