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________________ स्थानकवासी संप्रदाय का जीवनानुभव " रास्ते में कोई बस्ती नहीं है । यह सतपुड़ा का बड़ा जंगल कहलाता है । मालवे के निमाड़ प्रदेश की तरफ से आते हुए और आगे खान देश के तरफ जाते हुए बीच में सतपुड़ा की पहाड़ों की कतारें पार करनी पड़ती है। हमारे जंगलात के महकमें के नोकरों और चौकोदारों के सिवा किसी को इस रास्ते आना-जाना मना है। चोर और डाकू आदि इन जंगलों में छिपे रहते हैं । इसलिए उनकी निगरानी रखने के लिए हमारी ऐसी अनेक चौकियाँ इन पहाड़ों में बनी हुई है । आप इधर कैसे आगये हमको आश्चर्य सा लगा है । ( ५५ ) हमने आपके जैसे साधु कभी देखें नहीं है । हमारे गांव में कुछ बनिये लोग हैं जो जैनी कहलाते हैं, पर हमने वहां आपके जैसे उनके गुरू कभी प्राते देखे नहीं । बुनियों से हम कभी कभी सुनते हैं कि उनके जैन गुरु सेवड़े या यतीजी लोग होते हैं, और वे बड़े करामाती होते हैं, जंतर-मंतर, दवा-दारू प्रादि भी वे करते हैं । परन्तु हमने उनको कभी नहीं देखा । श्राके जैसे बाबा तो हमने अपनी जिन्दगी में पहली ही बार देखे हैं । सुनकर तपस्वीजी ने कहाकि हमारे भक्त लोग बड़े बड़े शहरों में होते हैं मालवे के इन्दौर, उज्जैन आदि शहरों में हमारे बहुत भक्त हैं । इसी तरह इधर दक्षिण में भुसावल, जलगांव, चालीस गांव आदि नगरों में भी हमारे भक्त लोग रहते हैं । हम साधु लोग उन लोगों को धर्मोपदेश सुनाने के लिए इधर उधर घूमते फिरते हैं । अभी हमारा विचार खान देश और दक्षिण की तरफ जाने का हुआ तो हम इधर निकल आये । परन्तु रास्ते में सुना कि सड़क के बड़े रास्ते पर होकर जाने वालों को आपेरगढ़ की छावणी के पास १० दिन रोक रखते हैं और प्लेग रोग के टीके आदि लगाते हैं । हमारा जैन साधु का जो धर्म है हम उसके अनुसार वैसा कर नहीं सकते । इसलिए हमने यह जंगल का रास्ता लेना पसन्द किया । हम लोग अपने साथ खाने-पीने का कुछ भी सामान नहीं रख सकते न पैसा कोड़ी ही हम अपने पास रखते हैं। गांव में जाकर हम किसानों आदि के वहां से भीक्षा मांग लाते हैं और उस पर अपना गुजारा करते हैं । हमारे लिए खास बनाया हुप्रा भोजन भी हम नहीं लेते और कोई लाकर हमें भोजन दे तो उससे भी नहीं लेते है । इत्यादि कुछ साधु धर्म की बातें जब उस थानेदार ने सुनी तो वह मन में कुछ प्रभावित सा हुआ और कहने लगा कि आप हमारे यहां स थोड़ा बहुत दूध लेलें और कुछ थोड़ी बहुत राटियां भी लेकर खालें फिर आप लोग यहां से निकल जायें। एक चौकीदार हमारे उस पड़ाव की चौकी पर जाने वाला है उसके साथ ग्राप चले जायें कोई शाम को ३-४ बजे आप उस गांव को पहुँच जायेंगे । हमने उस थानेदार के वहां जो मकान के बाहर गरम पानी होरहा था और उसके स्नान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001970
Book TitleMeri Jivan Prapanch Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1971
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size8 MB
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