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________________ ( ५४ ) मेरो जीवन प्रपंच कथा थोड़ी देर बाद वह अपने छोटे चौकीदार को साथ लेकर हमारी झोंपड़ी के आगे पाया और हमसे कुछ बातें पूछने लगा, तब तपस्वीजी ने अपनी स्थिति के बारे में कुछ बातें उसे बतलाई । सुनकर वह कुछ विचारों में पड़ गया और पूछने लगा कि आपने आज सारा दिन कुछ खाया-पीया नहीं और ऐसा विकट रास्ता इस तरह नंगे पैरों चलते हुए यहां पहुँचे अभी आप कुछ दूध लेना चाहेंगे, तो मैं आपको दे सकूँगा । तपस्वीजो ने कहा कि भाई साहब हम लोग सूर्यास्त होने के बाद कुछ भी खाते-पोते नहीं। कल सुबह देखा जायेगा। यह सुनकर वह थानेदार अपने मकान में चला गया और हम भी खूब थके हुए होने कारण नवकार मंत्र का स्मरण करते हुए निद्रादेवी को गोद में लोन हो गये । दूसरे दिन सुबह होने पर हम लोग प्रतिक्रमणादि क्रिया से निवृत होकर सूर्योदय होने पर झोंपड़ी में से बाहर निकले, ता हमारे साथ आने वाला चौकीदार हमारे पास आया और बोला बाबाजी मैं अब यहां से वापस अपने गांव जाऊँगा । आप लोग यहां से जो चौकीदार अगले पड़ाव की तरफ जायेगा, उसके साथ चले जाना. मैं उसको यह बात कह दूगा । चौकीदार की इस बात को सुनकर हमारे मन में उसके प्रति एक प्रकार का कृतज्ञता का भाव उत्पन्न हुआ । परन्तु हम सर्वथा निष्कीचन थे । उसको देने के लिए हमारे पास न कोई पैसा था, न कोई वस्त्र था और न कोई अन्य वैसी हो चीज थी, जो हम उसे दे सकं । कम से कम मेरे मन में तो यह बात खटक रही थी। न हमारे पाप वैसा गृहस्थ भी था जिसके पास से हम उसको कुछ पैसे आदि दिलाते। हमने केवल उसको दो मोठे शब्दों में कहा कि भाई तुमने हम पर बड़ी महरबानो की है जिससे हम किसी प्रकार को तकलाफ के विना इस चौकी पर पहँच गए हैं और अब आगे भी इसी तरह पहुँच जायेंगे । भगवान तुम्हारा भला करे । इतने में वह थानेदार अपने मकान में से निकल कर बाहर और शिष्टता बतलाते हुए "नमो नारायण बाबाजी" ऐसा कहता हुअा हमारे पास आया और कहा कि बाबजी रात को काई तकलीफ तो नहीं हुई ? अब आप यहाँ से कहां जाना चाहते हैं ? इत्यादि बातें पूछने लगा । हमने कहा भुसावल की तरफ हमें जाना है। यहां से कोई अच्छो बस्तो वाला गांव कितनी दूर है और वहां हम कैसे पहुँच सकेंगे ? इसका जरा रास्ता बताईये। तब उसने कहा कि यहाँ से १०-१२ मील की दूरी पर अमुक गांव है । बीच का सारा पहाड़ो अस्ता है और जिस तरह आप लोग कल तीन-चार पहाड़ियाँ लाँघकर यहां तक पहुँचे हैं, इसी तरह तीन-चार पहाड़ियाँ लांघने पर वह बस्ती वाला गांव आता है । यह सारा जंगली प्रदेश है, इस पच्चीस मील के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001970
Book TitleMeri Jivan Prapanch Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1971
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size8 MB
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