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________________ ( ४० ) मेरो जीवन प्रपंच कथा तपस्वी जी केशरीमलजी भी कुछ खास अभ्यासी नहीं थे, परन्तु लम्बे समय के दीक्षित होने से और उनके गुरू रामरतनजी जो समुदाय के एक प्रतिष्ठा पात्र साधु माने जाते थे उनके पास कितनेक सूत्रों और थोकड़ों जैसे भाषा प्रकरणों का ज्ञान प्राप्त किया था । साधुओं की परिपाटी के अनुसार अपना व्यवहार चलाने को दृष्टि से देशी भाषाओं में रचे हुए कुछ पुराने स्तवनों, स्वाध्यायो, ढालों, छन्दों वगैरह का भी परिचय प्राप्त किया था और चौमासे में या कुछ दूसरे स्थानों पर उपदेश सुनने के लिए आने वाले भाई बहनों के प्रागे ढाल, चौपाई, चौढालीयें वगैरह को गा गा कर उसके उपर कुछ प्रवचन वगैरह करते रहते थे। थोड़े आगमों को भी भाषण के टबार्थो के सहारे समझते-समझाते रहते थे । पर मैंने दीक्षा लेने के बाद 2-3 वर्ष क्या किया और किसका अभ्यास करने लगा, उसका वर्णन उपर दिया जा चुका है । तपस्वी जी केशरीमलजी का विचार हुअा कि उनके पास हम जैसे तीन चार शिष्य हैं इसलिए सबको साथ लेकर दक्षिण में रहने वाले अपने बड़े गुरु भाई उक्त श्री चम्पालालजी से मिलने जावें कारण कि चम्पालालजी के पास कोई खास शिष्य नहीं था। इस बि वार से तपसीजी ने उज्जैन के चातुर्मास के बाद दक्षिण की ओर विहार करने का विचार किया और इन्दौर पहुंचे । इन्दौर में महिने दो महिने रहने का प्रसग प्राप्त हुप्रा । इन्दौर में मुन्नालालजी के भाई का विचित्र प्रसंग इन्दौर में महिने दो महिने रहने का प्रसंग प्राप्त हुआ। मुन्नालालजी का छोटा भाई जो कुछ ज्यादा चालाक बनिया सा था वह मिलने के लिए आया । मुन्नालालजी ने उसको समझाया कि तुम भी हमारे साथ साधु हो जानो, और अपन तीनों एक कुटुम्ब के समुदाय जैसे रहेंगे, वगैरह । उसकी विशेष चर्चा तो मैं नहीं करता परन्तु उसने दीक्षा लेने का बराबर दिखावा किया । इन्दौर के श्रावक जन जो तपस्वी केशरीमलजी के भक्त कहलाते थे, उन्होंने दीक्षा महोत्सव की भी तैयारी की, और हमेशा के रिवाजानुसार पांच सात दिन का उत्सव आदि का प्रसंग भी बनाया गया। एक दिन बड़ा जुलूस निकाल कर उसको स्थानक में ही दोक्षा दी गई। दीक्षा लेने के वक्त अनेक प्रकार के मूल्यवान वस्त्र भी उसको पहनाये गये। दीक्षा लेने के बाद जब उसने साधु के कपड़े पहन लिए और वे जो जरी वगैरह के कीमतो वस्त्र उतार दिये थे, उनको श्रावकों ने उस समय गठड़ी में बाँधकर उस रात के लिए वहां उसी स्थानक के एक कोने में रख छोड़े थे ऐसा सोचकर कि कल जिसके वहां से ये कीमती कपड़े लाए गये हैं उसको वापस लौटा दिये जायेंगे । वह भाई जिसने खूब ठाठ-पाठ से दीक्षा ली थी उस रात को हम सबके सो जाने के बाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001970
Book TitleMeri Jivan Prapanch Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1971
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size8 MB
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