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________________ ( ३८ ) मेरो जोवन प्रपंच कथा जब उसके मुख्य द्वार पर पहुँचे तो वहां बैठे हुए, ब्राह्मण पुजारी ने जरा कठोर स्वर से पूछा कि “ढिये महाराज आप यहाँ क्यों आये हैं ।" तब मैंने कहा कि-पुजारीजी हम मन्दिर को अन्दर जाकर देखना चाहते हैं । तब पुजारो बोला कि आप इस तरह नहीं जा सकते । पहले नदी में जाकर हाथ पैर धो पाया और बाद में आपकी बगल में जो यह झाड़ सा है इसको यहाँ रखदो ( हमारे पास लम्बी डंडो वाला जो र नोहरण था उसको उस पुजारी ने अवज्ञा से झाड बतलाया ) और मुह पर यह पट्टी बाँध रखी है, उसको भी खोलकर यहाँ रख दो, फिर मन्दिर में जा सकते हो इत्यादि । पुजारी के ये वाक्य सुनकर हमको कुछ क्रोध हो पाया, और हम वहाँ से वापस लौट आये । ___महाकालेश्वर के इस मन्दिर को अन्दर से देखने का और जो तीधर स्वरूप शिवलिंग के दर्शन करने का प्रसंग तो मुझे कई वर्षों बाद प्राप्त हुना, मैं अहमदाबाद के गुजर त पुरातत्त्व मन्दिर के प्राचार्य पद का काम जब संभाल रहा था, तब उज्जैन में चातुर्मास रहे हुए स्व० प्रसिद्ध विद्वान् जैन मुनि श्री न्यायविजयजी ने मुझे आग्रह करके मिलने के लिए उज्जैन बुलाया था और मैं दो, तीन दिन वहाँ रहा था, तब महाकालेश्वर के मन्दिर के, चौंसठ जोगनियो के स्थान के तथा प्रावंतोपार्श्वनाथ के मन्दिर को देखने का भी अवसर प्राप्त हुप्रा । उस समय मुझे महाकालेश्वर आदि के विशेष इतिहास का कोई ज्ञान नहीं था । उज्जैन के प्रति मेरा केवल इतना ही आकर्षण का भाव था कि वह विक्रम राजा की राजधानी थी । वह विक्रम राजा जिस क्षत्रिय वंश में मेरा जन्म हुआ है उस परमार वंश का बहुत बड़ा राजा था । उसने चौंसठ जोगनियों और बावन वीरों को प्रसन्न किया था इत्यादि, किंवदन्तियाँ मैंने सुन रखी थो । प्रसिद्ध लोक गीतो में जिस राजा भरथरी हरि का प्रसंग सुनने में आता रहा है । वह राजा भरथरी भी उज्जैन का राजा था इत्यादि । चातुर्मास की समाप्ति पर हमने उज्जैन से प्रस्थान कर देवास होते हुए इन्दौर को ओर विहार किया । उज्जैन से दक्षिण देश की ओर विहार तपस्वीजी बहुत वर्ष पूर्व दक्षिण देश में विचरे थे जिस वक्त वे दक्षिण में विचरे थे उस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001970
Book TitleMeri Jivan Prapanch Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1971
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size8 MB
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