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________________ (८) मेरी जीवन प्रपंच का व्यवहार या प्रचार नहीं था । कोई गिने हुए बड़े साधु कुछ संस्कृत भाषा जानने वाले हैं ऐसा मैंने सुना था, परन्तु मेरा वैसे साधु से उस अवस्था में कभी काई मिलाप नहीं हुआ । ___मेरो बुद्धि कुछ चंचल थी, इसलिये मैंने कोई एक महिने में दशवकालिक सूत्र के प्रथम के चार अध्याय कंठस्थ कर लिये थे। साथ में कुछ कुछ थोकड़ों क पाठ भी करता रहता था । उस समय कोई भी छपी हुई पुस्तक न मैंने देखी पौर न मेरे हाथ में हो पाई । यों दीक्षित होने के बाद एक महिना हम दिग्ठाण में रहे । कार्तिक पूर्णिमा के दिन चतुर्मास का समय समाप्त हो गया और उसके दूसरे ही दिन हमने दिग्ठाण से बिहार कर दिया । दिग्ठाण से प्रस्थान धार का प्रथम वर्तुमास दिग्ठाण से चले बाद कुछ गांवों में होते हुए मालवे की उस इतिहास प्रसिद्ध धारा नगरी का नाम मैंने बचपन में ही अपने माता पिता आदि कुटुम्बी जनों से सुन रखा था। मेरा जन्म परमार नामक राजपूत कुल में हुआ था और उन परमारों की धारानगरी मुख्य राजधानी थी। इतिहास प्रसिद्ध ये बात मेरे बचपन से हो अन्तर में कहीं छुपी हुई थी। मेरी माता राजकुवर जो ऐसी पुरानी बातें जानने वाली थी, उसके मुंह से कई दफा धार और राजाभोज की कहानी आदि सुनने को मिली, इसलिये धारा नगरो देखने का अब जीवन में अवसर पा रहा है यह जानकर मेरा मन उत्सक हो रहा था । कोई७,८ दिन बाद हम धार पहुँचे । धार उस समय मालवे का स्वतन्त्र स्टेट था। संयोग वश वहाँ राजाजी परमार वश के राजपूत कुल के थे, परन्तु वे मूल में महाराष्ट्र निवासी थे और मुसलमानों के युग में उन्होंने शायद मराठा पेशावाओं के समय में महाराष्ट्र के पेशवा शासकों के समय इन लोगों ने धार को अपने कब्जे में ले लिया था। छोटा सा ही स्टेट था। हम जब धार के पास पहुंचे तो उसके प्रासपास की छोटी छोटी पहाड़ियां--उनके बीच में बने हुए पानी के कई छोटे बड़े तालाब मादि से वह प्रदेश मुझे बड़ा सुन्दर मालूम दिया। धार में इस सम्प्रदाय वाले श्रावकों ने अच्छा सा धर्म स्थानक बना रखा था । धार में रहने वाले श्रावक लोग अधिकतर पोरवाल जाति के वैश्य थे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001970
Book TitleMeri Jivan Prapanch Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1971
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size8 MB
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