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मेरी जीवन प्रपंच को
क्योंकि मैं बिल्कुल इस चर्या से अनभिज्ञ और अपरिचित था दिग्ठाण के स्थानक में जाकर जैसे ही हम बैठे, वैसे ही सैकडों जैन भाई बहिन साधुओं को वंदनादि करने को पाने लगे । संब ही मुझे कुतुहल से देख रहे थे । कल शाम तक मैं किस देश में दिग्ाण की गलियों में चूम रहा था और किस तरह मेरा राजशाहो ठाठ वाट से दिक्षा महोत्सव का जुलूस निकला और मैं बहुमूल्य जरी के कपड़े पहन कर हाथी के होदे पर बैठा हुआ दिग्ठाण के बाजार में निकला और हजारों की संख्या में ताँबे के पैने हाथो के होदे पर बैठा मैं इधर उधर खड़े लोगों पर उछालता रहा, आदि विचित्र दृश्य उन सब भाई बहिनों की आँखों के सामने नाच रहा था। वही किशनलाल आज आठ बजे इस स्थानक में साधु वेश पहने हुए एक छोटे से पाट पर बैठा बैठा सिकुड रहा था । भाई, बहिन, लड़के लड़कियां इत्यादि जो कुछ मुझे उन योड़े दिनों में बहुत परिचित हो गये थे, अब कइयों का तो मैं मेरे साथ कुछ प्रात्मीय सा भी जम गया था । वे मुझे अब बड़ो कुतूहल को दृष्टि से देखने लगे और नीचे झुक झुक कर मुझे नमस्कार भो करने लगे। कुछ एक दो बहिनें जो मेरे साथ अत्यन्त वात्सल्य भाव रखने लग गई थी, उनको आँखों में तो कुछ आँसु से भी आये मालूम दिये ।
___ समय होने पर तपस्वी जी महाराज ने व्याख्यान देना शुरू किया। गांव वाले तथा दीक्षा महोत्सव के निमित्त बाहर से आने वाले भाई बहिन भी बड़ी संख्या में व्याख्यान सुनने को उपस्थित हुए। दिग्ठाण का वह स्थानक छोटासा ही था । वास्तव में वह स्थानक नहीं था, परन्तु किसी महाजन की एक बड़ो सी दुकान थो, उसी में तपस्वीजी महाराज ने चातुर्मास के लिये निवास किया था। दीक्षा प्रसंग पर जब अनेक लोगों के आने की संभावना को लक्ष में-लेकर उस स्थानक के आगे का जो खासा चौड़ा सा बाजार का रास्ता था-उस पर कनात वगैरह बाँध कर लोगों के बैठने की व्यवस्था करदी थी ।
- उस दिन के भोजनोपरान्त प्रांगतुक भाई बहिन अपने अपने गांव जाने वाले थे, वे सब व्याख्यान में उपस्थित हुए और प्रसंगानुसार गांव के और बाहर वाले कई भाग्यवान श्रावकों ने नारियल, लड. पेड़े, बतासे. बादाम, छुहारे आदि वस्तुओं की पुड़िया बाँध बाँध कर व्याख्यान सुनने वाले भाई बहिनों लड़के लड़कियों को धर्म प्रभावना के खयाल से समर्पित की ।
इस प्रकार एक एक भाई के पास कोई तोन२ चार२ किलो वजन वालो ये सब चीजें हो गई। व्याख्यान के बाद गांव वालों की ओर से सबको सामूहिक भोजन दिया गया । जिसमें 'कई प्रकार की अच्छी २ मिठाइयां आदि परोसी गई थी । शाम तक लोग अपने अपने गांव चले
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