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________________ गुरू के सर्व प्रथम दर्शन सुनकर यतिजी महाराज बोले-वाह-वाह नाम तो बहुत अच्छा है ।-ऐसा कहते हुए वे पिता के पलंग के पास गये और पास ही नीमड़ी के चबूतरे पर उनके बैठने के लिए जो छोटी सी दरी बिछाई थी, उस पर बैठ गये। फिर मधुर स्वर में उनसे पूछने लगे "ठाकुर कितने दिन से बीमार हो ? कहां रहते हो?" आदि दो चार बातें करके उनका हाथ पकड़ कर नाड़ी देखी, चेहरे की तरफ देखकर उनके मुखाकृति आदि के भाव जानने का प्रयास किया-बोले-"दवा करने पर ठीक हो जाओगे, कोई चिन्ता करने जैसी बात नहीं है। ईश्वर की दया होगी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। बीमारी बहुत पुरानी है इसलिये मिटने में कुछ समय जरूर लगेगा।" पिताजी उस समय इतने थके हुए थे कि कुछ अधिक बोल न सकेकेवल यही कहा-"मेरे लिये तो भगवान आप ही हैं । मैं आपकी शरण मैं आ पड़ा हूँ। इसलिये मुझे अब चिन्ता काहेकी ।" गुरू महाराज उठकर चलने को हुए तो माँ से बोले-मैं कुछ दवा की पुड़िया दूगा, जिसको मौली छाछ में मिलाकर शाम तक तीन दफे इन्हें देना ! कल सुबह मैं फिर आकर देख जाऊंगा। यतिजी अच्छे लम्बे कद के और भरावदार शरीर के थे। उनका चेहरा बड़ा सौम्य और भव्य था। चौड़ा नाक था और लम्बी आँखें। सिर पर रेशम के तार जैसे सफेद केश थे जो गरदन तक लटकते थे। श्वेत मूछे थी और आवाज में बड़ा रणत्कार था । वे बहुत ही मधुर भाषी और हँसमुख थे। उनके प्रथम दर्शन से ही मेरे मन में उनके प्रति एक अव्यक्त भक्ति भाव अंकित हो गया। उन्होंने मेरी माँ से कहा-- "ठुकराणी ! इस बच्चे को मेरे साथ ले जाता हूँ। इसके साथ दवा की पुड़िया भेजूंगा।" मां सुनते ही मुझे घर में ले गई और पिताजी द्वारा लाये हुए नये पाजामा कुत्ता मुझे पहनाये और बोली-"जा, गुरां सा के साथ दवा ले आ ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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