________________
मेरे दादा और पिताजी के जीवन की घटनायें [ ३५
हो तो उसी में जाकर ठहर जाऊँ। ठाकुर साहब बोले, आप तो हमारे पूजनीय मेहमान हैं, आपका ठहरने करने का सब इन्तजाम हमारे यहाँ गढ़ में होगा । यह कह कर उन्होंने मेरा सामान ले आने को उसी नौकर को आदेश दिया । जो मुझे चारभुजा जी के मन्दिर से गढ़ में लेआजाने के लिये आया था ।
गढ़ में एक छोटे-से ऊंचे कमरे में मेरे ठहरने की शाम होने आई थी, भोजन आदि के लिये पूछा तो मैंने दूध लेने की इच्छा प्रदर्शित की ।
ठाकुर साहब वहाँ से उठकर फिर अपने नित्य के कार्यक्रम के लिये चले गये, जाते हुए उन्होंने कहा, मैं दो घन्टे वाद सेवा में उपस्थित होऊँगा, तब तक आप भी विश्रान्ति आदि लें ।
व्यवस्था की गई, सिर्फ़ पाव भर
मैं उस कमरे में गया जहाँ दरी, गालिचा आदि बिछवा दिये थे, पानी का तांबे का घड़ा भरवा कर रख दिया । मैंने अपने हाथ पैर धोये और मुंह म्रादि साफ किया। फिर नौकर दूध का गिलास भर करके ले आया । दूध पीकर कुछ थकान -सी महसूस हो रही थी इसलिये मैं यूं ही, उस विछात पर लेट गया ।
ठाकुर साहब जब मिलने आयेंगे तब इनसे अपनी माता के बारे में क्या पूछना चाहिए, और उसकी खबर - अन्तर का कैसे पता लगाना चाहिये, इस बारे में मैं सोचता रहा ।
थोड़ी ही देर में ठाकुर साहब मेरे कमरे में आये, पैरों पर हाथ लगाकर प्रणाम किया, फिर गलीचे के एक किनारे पलांठी मारकर दोनों हाथ एक साथ मिलाकर बड़ी अदब से बैठ गये और बोले, मुनिजी महाराज मुझे इतिहास का विशेष शौक है । इतिहास विषयक पुस्तकें और लेख आदि मैं बड़ी रुचि के साथ पढ़ता रहता हूँ । हिन्दी की नागरी प्रचारिणी पत्रिका तथा सरस्वती मासिक पत्रिका मैं नियमित पढ़ता रहता हूँ । आपके नाम से छपे हुये कुछ महत्त्व के ऐतिहासिक लेख, सरस्वती में तथा आपकी लिखी विज्ञप्ति त्रिवेणी, आदि पुस्तकों की,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org