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(३) वंश-परिचय
राजपूत जाति के भिन्न २ कुलों की वंशावली रखने वाले जो बड़वा भाट होते हैं, उनमें एक परिवार के पास मेरे पूर्वजों की वंशावली मुझे देखने को मिली । ये बड़वा ब्यावर के पास लाछुड़ा गांव में रहते
___कोई दो तीन वर्ष पहले रूपाहेली द्वारा इनको मेरा कुछ पता मिला। घूमते-फिरते ये मेरे पास चन्देरिया आ पहुँचे ।
ऐतिहासिक दृष्टि से मुझे इनका बहिड़ा (वह पुरानी पुस्तक जिसमें अनेक पीढ़ियों की नामावली और कार्यावली लिखी रहती है) देखने का प्रसंग मिला । इनके बहिड़े में कुछ पुराना हाल लिखा हुआ था। जो कई पीढ़ियों के भिन्न भिन्न हाथों से लिखा हुआ पाया गया। उसका कुछ भाग तो नष्ट भी हो गया था। एक तरफ का कुछ हिस्सा चूहों ने भी काट रखा था। बहिड़ा खासा बड़ा था और इसमें न जाने कितने ही कुटुम्बों की वंशावली लिख रखी थी। इसके अक्षर भी कई तरह की लिखावट के थे, जिससे ज्ञात होता है कि ३-४ पीढ़ी से यह बहिड़ा रखने वाले कुटुम्ब के अधिकार में रहा है।
हमने अपनी ऐतिहासिक तथ्यों की छान-बीन वाली दृष्टि से इसका निरीक्षण किया तो इसमें, पंवार (आर्थात् परमार) वंश के बिजोलिया और बंबोरा वाले ठिकानों से सम्बन्ध रखने वाले अनेक शाखा कुलों के वंशानुक्रम का परिचय और उनमें उत्पन्न होने वाले प्रसिद्ध स्त्री-पुरुषों के नाम, ठाम और उनका किन २ गांवों के किन २ कुटुम्बों से वैवाहिक सम्बन्ध आदि हुए इस का उल्लेख किया गया मिला।
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