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________________ विशेष टिप्पणी [१९१ जी द्वारा प्रतिष्ठित नूतन आर्य समाज के प्रमुख प्रशंसक और समर्थक बन गये थे । मेरे पिताजी भी महर्षि दयानन्द जी के प्रभाव से आर्य समाज के विचारों के अनुयायी से बन गये थे। इसलिये वाकुर साहब का स्नेह भाव उन पर बराबर बढ़ता रहा । परन्तु पिताजी का देहान्त बहुत पहले हो गया और ठाकुर साहब का जीवनकाल यथेष्ठ दीर्घ रहा अतः उनका जीवन क्रमशः प्रगति करता और विकास की दिशा में उत्तरोतर बढ़ता गया । ठाः चतुरसिंह जी हिन्दी के अच्छे लेखक थे तद् उपरान्त वे संस्कृत भी ठीक-ठीक जानते थे और गुजराती भाषा भी अच्छी तरह पढ़ समझ लेते थे । अंग्रेजी की शिक्षा उन्होंने अजमेर के मेयो कॉलेज में पाई थी और राजस्थान के सरदारों में से सर्व प्रथम मेट्रीक की परीक्षा पास करने बालों में प्रमुख व्यक्ति थे । वे हिन्दी, डीगल और संस्कृत के पद्यों की रचना भी करते थे। महात्मा गाँधी जी ने सन् १९२० से देश की स्वतन्त्रता के लिये जो अहिंसक असहयोग आन्दोलन शुरू किया तब ठाः चतुरसिंह जी भी उससे बहत प्रभावित हये थे। यद्यपि इसमें किसी प्रकार का प्रत्यक्ष योग दे सकें ऐसी उनकी परिस्थिति नहीं थी तथापि वे इस आन्दोलन के प्रति पूरी सहानुभूति रखते थे । उन्होंने अपने क्षत्रिय बन्धुओं को उद्दिष्ट कर कुछ पद्य लिखे हैं । जिनमें से कुछ उदाहरण स्वरूप ३-४ पद्य यहाँ उधृत करना चाहते हैं - धर्म जाति बरण, तज ध्यान, भूस्वामी सब भारती । मिलकर रचो महान्, सेना अगणित सात्विकी । सविनयऽवज्ञानित, असहयोग अनशन प्रभृति । ऐसा युद्ध अजीत, मोहनास्त्र से जय करो ।। धर्म अहिंसक धार, रोकें कृषि वाणिज्य श्रम । निज महि बल अनुसार, जब जनता होगा विवश । सकल निवेदन सार, परिचय इस पद्यार्द्ध में । दुःख भय संकट हार, अजय दुर्ग है एकता ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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