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जिनविजय जीवन-कथा
विशेष टिप्पणी
स्व० ठाकुर साहब श्री चतुर सिंह जी के इन पत्रों के पढ़ने से विज्ञ पाठकों को यह ज्ञात हो जायगा कि वे एक कितने अच्छे विद्या विलासी, इतिहास रसिक, सुसंस्कार सेवी और सुरुचिप्रिय सरदार थे। राजस्थान के सामन्ती सरदारों में उनके जैसा और कोई व्यक्ति हुआ हो ऐसा मुझे ज्ञात नहीं। उनके लिखे पत्रों की भाषा और भावना से यह स्पष्ट प्रकट हो रहा है कि वे कितने विद्यानुरागी और सदाचरणशील सज्जन पुरुष थे। उनके इन गुणों का जब मुझे विशेष परिचय हुआ तो उनके प्रति मेरी श्रद्धा बढ़ती गई । मैं उनको अपने पिता के तुल्य आदर की भावना से देखने लगा और एक-आध पत्र में मैंने उनको ऐसा लिख भी दिया। इसको पढ़कर उनके मन में जो प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई उसको उन्होंने अपने पत्रांक नं० ६ में व्यक्त की है ।
मेरे लिखे कुछ ऐतिहासिक लेखों को वे कितनी गहराई से पढ़ते थे और उसमें प्रतिपादित नूतन तथ्य आदि के बारे में उनका जो अभिमत बनता था वह भी वे स्पष्ट रूप से मुझे लिख दिया करते थे। गुजरात के चामुण्डराज का जो एक ताम्रपत्र मैंने अपने संपादित 'भारतीय विद्या' नामक पत्रिका में प्रकाशित किया। उसमें गुप्त संवत् और विक्रम संवत् विषयक जो भ्रान्तिजनक उल्लेख मिला और उसके विषय में मैंने जो स्पष्टीकरण किया उसे उन्होंने बहुत ही ध्यानपूर्वक पढ़ा और उस विषय में अपना जो विचार था वह उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा ।
ठा० श्री चतुरसिंह जी आर्य संस्कृति के बड़े प्रेमी थे और वे आर्य भाषाशैली संस्कृतनिष्ठहिन्दी भाषा के बहुत पक्षपाती थे । अपनी भाषा में वे विदेशी शब्द प्रयोग करना पसन्द नहीं करते थे। वे सनातन धर्म के प्राचीन विचारों के उपासक थे तथापि महर्षि स्वामी दयानन्द
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